Monday, June 9, 2014

अगर मुसलमान न होते |


वो कहते हैं कि अगर मुसलमान न होते तो बेहतर था, मैं कहता हूँ कि मुसलमान न होते तो ये देश हिंदुस्तान, हिंदुस्तान न होता. ये जम्बू दीप भारत खंड हो सकता था या फिर आर्यों का आर्यावर्त. लेकिन ये हिंदुस्तान तो कतई नहीं हो सकता था. एक देश जहाँ ब्राह्मण दलितों के कान में सीसा पिघलाकर डाल रहा होता, उनके जीवन के अर्थों में उदासी और बेचैनी के रंग भरता हुआ, विश्वगुरु होने का दंभ भरता या फिर शैव और वैष्णव के खून से धारा को लाल कर रह होता. उत्तर वाले दक्षिण वालों को धर्म समझाते कि अपनी ही भांजी या ममेरी, चचेरी, फुफेरी बहन से शादी करना धर्म के खिलाफ है. ये सनातन धर्म सम्मत नहीं है. तब दक्षिण वाले उन्हें और उनके धार्मिक समझ को नकार देते और फिर तलवारें तय करतीं कि कौन सही कह रहा है और किसकी बात मानी जायेगी.


मुसलमान न होते तो जो सहनशील, क्षमाशील, विनयशील और एकमत हिंदूइज्म दीखता है वो न होता. मुस्लमान न होते तो लखनऊ न होता, इलहाबाद न होता, वो नजाकत और नफासत न होती, भारत की शान लाल किला न होता, प्रेम की परिभाषा ताज महल न होता, चार मीनार न होती, अदब में वो धार न होती. मीर, मखदूम, मोमिन, जोश और दाग न होते, जाँ निसार अख्तर, जावेद, शबाना, युसूफ, गुलज़ार न होते.

अगर मुस्लमान न होते तो उपमहाद्वीप के अखंड संगीत को सुननेवाला अमीर ख़ुसरो न होता, कृष्ण के प्रेम में पागल रसखान न होते, पूरे देश का दर्प तोड़ने वाला कबीर न होता, पूरे उपमहाद्वीप के बेचैन दर्द को आवाज़ देने वाले ग़ालिब न होते.

मुसलमान न होते तो अट्ठारह सौ सत्तावन न होता, असफाक उल्ला खान न होते, अब्दुल हमीद शहीद हो इस माटी में दफ़न न होता, बहादुर शाह जफ़र न होते, बेगम हज़रात महल, चाँद बीबी, चचा हसन न होते. अबुल कलाम आज़ाद, गफ्फार खान, मग्फूर अहमद, मंज़ूर एहसान, आसिफ अली, मौलाना शौकत अली, अब्दुल कलाम न होते, अगर मुस्लमान न होते तो ये हिन्दुस्तान न होता।

वो कहते हैं कि अगर मुसलमान न होते तो बेहतर था, मैं कहता हूँ कि अगर मुगालमन न होते तो ये देश हिंदू पाकिस्तान होता। जहाँ सरियात की जगह मनु स्मृति का निजाम होता। अकबर की निजामी तासीर न होती, सेकुलरिज्म का नाम न होता। अगर मुस्लमान न होते तो ये देश जैसा है, वैसा प्यारा "मेरा हिंदुस्तान" न होता।


अनुराग अनंत 

No comments: