अभी कुछ दिन पहले शिक्षक दिवस बीत गया ,शिक्षक बोले तो question दागने का टैंक ,जो जहाँ मिलता है'' दे भन्न से '' के अंदाज़ में question दाग देता है ,मगर अपने बनवारी लाल जी के बच्चे के क्या कहने , और हो क्यों न , बनवारी लाल जी ने उसका नाम ही महान लाल रखा है,यूँ तो कक्षा दो में पढ़ते है महाशय, मगर किसी दार्शनिक से कम नही है . अब अगर ऐसे महान दार्शनिक विचारों के छात्र से कोई साधारण छात्रों वाला प्रश्न पूछेगा तो आप समझ ही सकते हैं कि उसके दिमाग की दही बनने में कितनी देर लगेगी ,शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर एक ऐसा ही साधारण प्रश्न महान लाल से पूछ लिया गया कि ''तुम बड़े हो कर क्या बनोगे ''फिर क्या था महान लाल किसी महान उत्तर की तलाश में कुछ देर चुप रहा फिर एक काव्यात्मक उत्तर दिया ,कि गुरुवर! ,
न प्राइममिनिस्टर , न गवर्नर ,
अब नहीं लुभा पाते मुझे धोनी और तेंदुलकर ,
अब न अमिताभ बच्चन बनना है ,
न राजेश खन्ना बनना है ,
मेरे दिल में तो बस अन्ना बनने कि तमन्ना है ,
हाल तालियों से गूँज उठा कि तभी शिक्षक ने जोर से पुछा, क्यों ? महान लाल ने कहा :- गुरु जी ! अन्ना सर्वशक्तिमान और परम कल्याणकारी हैं। उन्हें छोडिये उनकी टोपी इतनी शक्तिशाली है कि परम शक्तिमान नेता गण और अनंत शक्तिमान संसद भी उससे डरती है ,आप अन्ना की वो चात्मत्कारी टोपी पहन लीजिये फिर चाहे गाड़ी पर तीन सवारी बिना हेलमेट के चलिए, या फिर झंडे का अपमान करिए, सरकारी राशन की दूकान पर कालाबाजारी करिए, फर्जी चंदा उसूलिये, दिल्ली की सड़कों पर बिना डर के मूत्रदान करिए, ये टोपी इतनी महान है कि इसे पहन कर यदि आप दारू भी पियेंगे तो आपके मुंह से गाली नहीं ''इन्कलाब जिंदाबाद'' निकलेगा और आप आराम से रामलीला मैदान में रात भर कैंडल डांस एन्जॉय कर सकेंगे ,अन्ना तो कलयुग के भागीरथ है जिन्होंने देशभक्ति की नयी गंगा देश में बहाई (वरना लोग तो टीम इंडिया की जीत से निकलने वाली देशभक्ति की गंगा से बोर हो गए थे टीम अन्ना की जीत ने मुंह का स्वाद बादल दिया) जिसमे कई भ्रष्टाचारियों और देशद्रोहियों को अपने तन की कालिख को धुलने में मदद की, वो भी किसी खास प्रक्रिया में उलझाए बिना, .करना कुछ नहीं था बस ''अन्ना तुम संघर्ष करो ,हम तुम्हारे साथ हैं'', का नारा लगाया और हो गया रंग काले से बसंती। ठीक किसी कपडा धुलने वाले साबुन के प्रचार की तरह रोचक और सरल, अब आप ही बताइए गुरु जी! जो इंसान भगत सिंह की कुर्बानी का रंग एक डुबकी में चढवा सकता है, वो कितना महान है और मै ऐसे तो महान हूँ ही, वैसे भी महान बनना चाहता हूँ। इसीलिए हे गुरु जी! मैं तो अब बस अन्ना बनना चाहता हूँ , सर्व शक्तिशाली अन्ना जो...........................
तुम्हारा--अनंत
2 comments:
अनुराग आपने अच्छा लिखा है..आपका व्यंग्य बहुत मारक है, बिलकुल नावक के तीर की तरह जो घाव करे गंभीर...इसी तरह लिखते रहिए.
bahut hi achha vyang
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