अपने बनवारी लाल जी यूँ तो मो० कैफ की तरह आऊट आफ फार्म रहने वाले आदमी हैं। पर भईया जब एक बार उनकी जुबान चल गयी यकीन मानिए आपके दिमाग को लार्ड्स बना डालेंगे और शब्दों के ऐसे छक्के-चौके लगाएंगे कि सपनों की सेंचुरी होते देर नहीं लगेगी। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप LBW. हो रहे है या फिर रन आऊट। वो तो बस खेलने में मस्त रहेंगे, बात एक्चुली ये है की बनवारी लाल जी शिव खेडा, राबिन शर्मा सरीखे मोटिवेशनल गुरुओं से काफी प्रभावित है। तभी तो उन्हें जब भी मौका मिलता है मोटिवेशन करने लगते ये भी नहीं देखते की सामने वाला मोटिवेट होना भी चाहता है कि नहीं, अभी कल की ही बात लीजिये, एक भिखारी चला आ रह था। उस बिचारे से भूल से ये भूल हो गयी कि उसने बनवारी लाल जी से एक रुपया मांग लिया। फिर क्या था बनवारी लाल जी के भीतर का शिव खेड़ा जाग उठा और वो शरू हो गए वैसे ही जैसे पंडित जी मंत्र पढ़ते है। अरे वृद्ध भिक्षुक! तुम प्रमाद में डूबे हो और धन के इक्षुक हो,पर यकीन मानो ये हाँथ जिन्हें तुम दूसरों के सामने फैलाते हो . ये दूसरों को दान देने के लिए बने है। तुम जिन आँखों को लोगों के सामने झुका कर बात करते हो, वो गगन के पार देख सकती हैं। तुम्हारे एक इशारे पर धरती पताल एक हो सकते हैं। तुम मनुष्य हो, असीम संभावनाओं के स्वामी हो, तुम अग्नि, जल, आकाश, पर राज कर सकते हो , तुम अजर हो, अमर हो, विजेता हो, शक्तिपुंज हो, तुम यदि चाहो तो प्रदानमंत्री, राष्ट्रपति,......कुछ भी बन सकते हो। अब्राहम लिंकन से अब्दुल कलाम तक लाखों उदहारण है,जो तुम्हे आगे बढ़ने के लिए कह रहें हैं। ध्यान से सुनों अपनी धड़कनों को, वो तुमसे कुछ कहती है, तुम सब कुछ बदल सकते हो, तुम महान हो। हे भिक्षुक! तुम इंसान हो, भिखारी पहले तो संजीव कुमार की तरह लुटा पिटा खड़ा रहा, फिर देवानंद की तरह हिल कर, नाना पाटेकर की स्टाईल में बोला, ये भाषणबाजी अमेरिका जैसे देश में देना शिव खेड़ा साहब! ये हिन्दुस्तान है, यहाँ गरीबों की धड़कन सिर्फ एक चीज़ कहना जानती है वो है ''रोटी'' उसे इसका नाम रटने से फुर्सत मिले तो कुछ और कहे, आपकी सारी बात इंसानों पर लागू होती हैं, वो इंसान जो आपकी (शिव खेड़ा ) महंगी किताब खरीद सके और उसे अपने इंसान होने पर यकीन हो सके, ''पर बाबू साहब ये हिन्दुस्तान है !,यहाँ गरीबों को इंसान नहीं समझते .........
तुम्हारा --अनंत
8 comments:
achchi koshish...
thanx sir
अच्छा प्रयत्न है. अभी मांजने की ज़रूरत है. टाइप की गलतियों पर काबू पाने की भी ज़रूरत है. लगता है जल्दी ही भाषा का प्रवाह भी सधने लगेगा. लगे रहो. अच्छा लिखने के लिए खूब मेहनत करनी होगी.कमर कसलो.शुभकामनाएं.
thax sir very much
good going...keep it up!
बात कड़वी है पर सच तो है।
जिस देश में अध्संख्या जनसँख्या की चिंता दो समय की रोटी का जुगाड़ करने की हो , प्रेरणा किताबों में ही बंद रह जाती है ...
अच्छा लेख!
Very nice anant,
Very trace people like you, who understand the reality and accept. Continue.....
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