‘’Vibrant Gujarat’’ यानी जीवंत गुजरात का नारा देने वाले नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार न जाने कहाँ जीवन का संचार करने में जुटी है, अम्बानी, अदानी, और मारुती के खजानों में, अपने नेताओं और नौकरशाहों के सुरंगी पेटों में, गुजरात को स्वर्ग दिखने वाले मीडिया के विज्ञापनों में, या फिर इन्द्र की सभा में मनाये जाने वाले उत्सवों की शान पर बट्टा लगाते गुजराती उत्सवों में.
सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र में फैले जिलों में अकाल से जूझता किसान कर्ज और प्रकृति की मार खाकर आत्महत्याओं से अपनी जीवन लीला का दुखांत लिख रहा है और सरकार अपने तोंद पर हाथ फेर रही. ये वो दौर है जब गुजरात में कच्छ, गांधीनगर, पाटण, अहमदाबाद, दाहोद, खेडा, पंचमहल, बडोदरा, और अमरेली, सहित करीब दस से ज्यादा जिले अकाल से जूझ रहे है. और सरकार असंवेदनशीलता की इबारत लिखने में व्यस्त है. गौरतलब है की गुजरात सरकार के मंत्रीमंडल और सचिवों की बैठक में नास्ते में परोसे जाने वाले व्यंजनों और पकवानों पर होने वाले खर्च को बढ़ाकर ढाई गुना कर दिया है. ये फैसला अगस्त के दूसरे सप्ताह से लागू हो गया है. अब बैठक में एक व्यक्ति के नास्ते पर 180 रु खर्च किये जायेंगे. पहले खर्च की सीमा 75 रु थी जो अब ढाई गुना बढ़ने के बाद 180 रु हो गयी है.
मोदी सरकार ने बढते, दौड़ते, और सबको पीछे छोड़ते गुजरात की जो भ्रामक तस्वीर मीडिया के सहारे गढ़ी है उसमे किसानो का लहू का रंग सबसे ज्यादा है. पूजीपतियों के विकास को सम्पूर्ण राज्य का विकास मानने वाले मोदी जी को किसानो के मौत के आंकड़े नहीं दीखते तभी तो उनकी सरकार में किसानों की मौत का मखौल उड़ाते फैसले लिए जा रहे है. रुपये-रुपये के लिए तरसते किसानों की मौत पर चर्चा करने और राहत की निति बनाने बैठे नेता और नौकरशाह 180 रु का नास्ते चटकर जाते है. ये कैसा विरोधाभास और विडम्बना है इस देश में, जहाँ योजना आयोग गरीब को ३२रु में जीने, खाने-पीने, और घर चलाने की नसीहत देता है वहीँ नेता और नौकरशाहों अपने नास्ते पर 180 रु खर्च करते हैं.
गुजरात में किसानों की मौत की सबसे ज्यादा घटनाएँ राज्य के कृषि मंत्री दिलीप संघाणी के गृह क्षेत्र अमरेली जिले में हुई हैं. फिर भी इस तरह का असंवेदनशील फैसला लिया गया है जोकि सरकार का किसानो के प्रति रवैये की कहानी कहने के लिए पर्याप्त है.
गुजरात परिवर्तन पार्टी(जीपीपी) के महासचिव गोरधन झड़फिया ने कहा है कि उत्सव समारोहों पर धन बर्बाद कर रही राज्य सरकार सूखे से बर्बाद फसलों से हताश किसानों को कोई सहायता नही दे रही. उनके पास उपलब्ध आकंड़ों के अनुसार वर्ष 2003 से मार्च 2007 तक करीब तीन वर्षो में ही 462 किसानों ने आत्महत्या की। उनमें वर्ष 2003 में 94, वर्ष 2004 में 98, वर्ष 2005 में 107, वर्ष 2006 में 127 एवं 31 मार्च 2007 तक के तीन माह में राज्य में 36 किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी।
किसानों की आत्महत्या पर राजनेता राजनीती कर रहे है और किसानो के परिवार अभिसप्तों का जीवन गुजारने को विवश है. हमारे देश में किसानों और उनके परिवारों की यही नियति है शायद.
गुजरात के आमलोगों का मानना है कि मोदी सिर्फ मार्केटिंग करने पर विस्वास रखते है वो गुजरात को एक उत्पाद मानते है और उसकी पैकजिंग और मार्केटिंग करने में जुटे रहते है. वो खुद को एक विकासवादी ब्रांड बनाना चाहते है. गांधीनगर विश्वहिंदू परिषद के कार्यकर्ता और व्यवसायी कनुभाई पटेल कहते है कि सरकार चाहती तो अब तक 84 हजार किलोमीटर में नर्मदा नहरों का काम हो गया होता। इससे 1,792 लाख एकड़ को सिंचाई के लिए पानी मिलने लगता, लेकिन सरकार ने किसानों की समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया परिणामस्वरुप पिछले दस सालों में सरकार महज 2000 किलोमीटर में नहरों का काम पूरा कर पायी है. वो कहते है कि मोदी कि सरकार में आम आदमी का जीना दुस्वार हो गया है ये सरकार अदानी, अम्बानी, और मारुती के लिए योजना बनाती है आम आदमी को ये नहीं पहचानती.
सिचाई की समस्या यहाँ एक मुख्य समस्या है, नर्बदा-नहर योजना पर काम ऐसे-वैसे ढंग से चल रहा है. नर्मदा मुख्य नहर का 463 किलोमीटर का काम तो पूरा हो गया जबकि माçलया ब्रांच व सौराष्ट्र ब्रांच का 50-50 फीसदी काम ही पूरा हुआ। कच्छ ब्रांच नर्मदा ब्रांच का काम अभी शुरू ही नही हुआ। राज्य सरकार की प्रशासनिक अकुशलता से नर्मदा का पानी खेतों की बजाए समुद्र में जा रहा है। पानी की कमी से फसलें खेतों पर खड़ी-खड़ी सूख जा रही है और किसान, जिसने महंगे बीज और खाद में कर्ज ले कर पैसे लगाये है विवश हो कर आत्महत्या कर रहा है यही वो विभत्स्य कहानी है जो लगभग पूरे सौराष्ट्र-कच्छ क्षेत्र में फैली हुई है. मोदी सरकार में यदि अभी भी कुछ संवेदना बची है तो कम से कम उसे फसल खराब होने वाले किसानों के लिए प्रति एकड़ कम से कम पांच हजार रूपए का सरकारी सहायता पैकेज घोषित करना चाहिए।
तुम्हारा अनंत