Sunday, August 12, 2012

.मैं अपनी जगह कह के लूंगी......

फेसबुक पर एक दोस्त की दीवार से दूसरे दोस्त की दीवार पर जब मैं टहल रहा था तभी एक जगह मुझे साइना नेहवाल का स्टेटमेंट चस्पा मिला. जिसमे नजरंदाज और अस्वीकार किये जाने की पीड़ा थी. उस पीड़ा के प्रति आत्मस्वाभिमान से लैस प्रतिकार की भावना और अपने पूरे वजूद के साथ जीतने का एहसास था. कुलमिला कर कहूँ तो मुझे साइना के उस कथन में नारी संघर्ष की विजयगाथा की अनुगूंज सुनाई दी थी.


ओलम्पिक में भारतीय अस्मिता की प्रतीक बनी साइना नेहवाल ने अपना दर्द साझा करते हुआ कहा था ‘’मेरे जन्म के एक महीने बाद मेरी दादी मुझे देखने तक नहीं आई. मेरी बड़ी बहन चंद्रान्शु के बाद सात साल के इंतज़ार के बावजूद लड़की पैदा हुई थी और मेरी दादी दादा को इसी बात का अफ़सोस था. मेरे सब रिश्तेदार चाहते थे कि खेलने या किसी भी चीज में लड़कियों को प्रोत्साहन न दिया जाए. इसलिए मेरी उनमे से किसी से भी बमुश्किल ही बात हो पाती है. आज हम जिस घर में रहते है वो मेरे पैसे से ख़रीदा हुआ है और वो घर मेरे ही नाम पर है. .....,, इस पूरे कथन में साइना कहीं नहीं हैं. यहाँ महज एक लड़की या एक औरत बोल रही है. जिसने अपनी मेहनत के बल पर चुनने और ख़ारिज करने की ताकत पा ली है. वो उस तथाकथित रिश्ते-नातो और समाज को नजरंदाज कर देती है. जिन्होंने उसे कभी नजरंदाज किया था, दबाया था. वो अपने कमाए पैसे से जब अपने घर का नाम खुद के नाम पर रख रही होती है उस वक्त वो घर उसे अपने स्वतंत्र वजूद का साकार रूप दिखता है. ये एक नारी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एहसास है


इधर साइना नेहवाल जब ये शब्द कह रही थी तभी शर्मीला ईरोम की बेटी (मणिपुर की रहने वाली) मारी कॉम टयूनेशिया की मारोया रहाली को 15-6 से हरा कर भारत के लिए लन्दन ओलम्पिक का चौथा पदक सुनिश्चित कर रहीं थी


ये वो समय था जब उधर साइना नेहवाल और मारी कॉम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का मान बढा रही थीं. और इधर हरियाणा की खाप लड़कियों से मोबाईल पर बात करने और झारखंड के फासीवादी संगठन जींस पहनने तक की आजादी छीन लेना चाहते थे.ये वो समय था जब उत्तरप्रदेश के लालगोपालगंज के एक गाँव में 11 साल की एक गूंगी बहरी लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार की कीमत उस गाँव के असंवेदनशील बुजुर्ग पंचायत ने 21 हज़ार रूपए आंकी थी. इलाहाबाद जंकशन से 15 साल की एक छात्रा उठा ली गयी थी और चार दिन तक लगातार गैंगरेप झेलती रही. शाहजहाँपुर के तिलहर में घर में सो रही 14 साल की सोनी को दबंगों ने घर से उठा लिया था और बाग में ले जा कर सामूहिक बलात्कार का नरकीय अनुभव कराया था. और उस मासूम ने लोक-लाज के डर से अगली सुबह खुद को आग लगा ली थी. दिल्ली के कॉलसेंटर में काम करने वाली एक लड़की का उसके ही दोस्तों ने गेंगरेप किया था और दिल्ली-आगरा हाइवे के बल्लभगढ़ पुल पर तडपते हुए छोड़ दिया था. बागपत जिले के राठोडा गाँव में एक लड़की बंधक बना ली गयी थी और 6 दिन तक लगातार गैंगरेप की अपमान भरी नरकीय पीड़ा झेल रही थी. देवबंद में 13 वर्षीय 7वीं की छात्रा के साथ बताल्कार किया जा रहा था. ऐसी ही जाने कितनी हकीकत को आइना दिखाती तल्ख़ दर्दभरी कहानियां अखबारों में एक कॉलम और टेलीविजन में दो मिनट की रिपोर्ट में मुसलसल सिमटती जा रहीं थीं. ये वही समय था जब आंकड़ों के आदि हो चुके हम लोग सरकारी एजेंसी की एक रिपोर्ट में ये पढ़ रहे थे कि हमारे इस प्यारे देश में औरतों के साथ हर 47 मिनट में एक बलात्कार, हर 44 मिनट में एक अपहरण, 60% कामकाजी महिलाओं के साथ किसी न किसी रूप में यौनशोषण और लगभग 30,000 बच्चियां गुडिया खेलने की उम्र में जिस्म के बाज़ार में खुद एक खिलौना बन चुकी हैं.


तब कहीं न कहीं महिलाओं से प्रति बढ़ते अपराध के बिना पर ये कहने या सोचने की गुंजाईश घर कर रही थी कि इस पुरुषवादी समाज को महिलाओं की ये विजय और विस्तार रास नहीं आ रहा है. ये समाज जिसे देवी मान सकता है उसे बराबरी का हक देने में कतरा रहा है. शायद ये बात हमारे देश की युवा महिला पीढ़ी समझ चुकी है तभी तो संगीत निर्देशन के क्षेत्र में पुरुष वर्चस्व से लोहा लेते  हुए महाराष्ट्र की स्नेहा खानवलकर बिहार और बनारस की सड़कों की खाक छानती हुई गाँव-मोहल्लों, खेतों-मैदानों में झाडू की आवाज, कपडे धोने की आवाज और मुर्गे की बांग से संगीत रचतीं है और सारे समाज को चौका देती है. वो घर की चार दीवारी में सोहर-कजरी गाने वाली वूमनिया से गैंग आफ वासेपुर में ‘’ओ रे वूमनिया’’ गवाती है और गृहस्ती की उलझन में अपनी पहचान खो चुकी मिथिला की रेखा झा और बनारस की खुशबु राज को एक नई पहचान दिलाते हुए अपना बहनापा जताती है . जब स्नेहा ‘’’मैं तेरी कह के लूँगा’’’ गाती हैं तो लगता है मानो यातना और अपमान सहने वाले वो सारे कंठ जिन्हें हासिये पर ढकेल दिया गया था एक साथ कोरस में गा रहे हो कि ...’’मैं  अपनी जगह कह के लूंगी’’ और मुझे कोई नहीं रोक पायेगा न अपहरण, न बलात्कार, न यौन शोषण और न गैंगरेप, मैं अपनी मंजिल अपना वजूद पा से रहूंगी,,, कहे देती हूँ....मैं अपनी जगह कह के लूंगी.

यह लेख आई-नेक्स्ट(दैनिक जागरण)  में 14 अगस्त को प्रकाशित हुआ है.
लिंक नीचे है....
http://inextepaper.jagran.com/51775/I-next-allahabad/14.08.12#page/17/2 



तुम्हारा- अनंत 


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