Wednesday, January 2, 2013

स्वतंत्रता बनाम स्वछंदता


जब सारा देश नए साल का स्वागत जश्न के माहौल से नहीं बल्कि आँखों में आंसू लिए इस संकल्प के साथ कर रहा था कि अब देश की किसी भी लड़की या महिला के साथ बलात्कार जैसी आमानवीय घटनाएं नहीं होने देंगे. उसी समय गुडगाँव के एक समारोह में कला के नाम पर अश्लील कुंठाएं बेचने वाला एक गायक अपने फूहड़ गानों का दरबार सजाये बैठा था. ये वही था जो ‘’मैं हूँ बलात्कारी’’ जैसे क्रूर और अश्लील गाने गाता है और विडम्बना ये कि प्रसिद्धि और लोकप्रियता भी हासिल कर लेता है. दुःख तो तब होता है जब इसके चाहने वालों में लड़कियों की भी भारी संख्या देखी जाती है.

दिल्ली की सड़कों पर जो युवा “ वी वांट जस्टिस” के नारे लगते, पुलिस की लाठी खाते पाए जाते है वही इसके गानों और वाहियात कार्यक्रमों में थिरकते और इसकी एक दरश को तरसते भी मिलते है. हैरानी तब और बढ़ जाती है. जब देश की सरकारें इसे सरकारी कार्यक्रमों में बुलातीं है और मंचों पर मुख्यमंत्री इसके साथ नाचती हुई पायी जातीं है. सच कहता हूँ यकीन नहीं होता कि 21 वीं सदी में क्या यही कला और कलाकार हैं? अगर हाँ तो मुझे लगता है कि कला और कलाकार दोनों की संवेदना मर चुकी है. जब मैं ये सब कुछ सोच रहा हूँ तब मेरे दिमाग में कालीदास से ले कर सफ़दर हाश्मी तक के नाम आ रहे है और मन में वन्देमातरम से सरफरोशी की तमन्ना तक सब कुछ गूँज रहा है.

हिन्दुस्तान के मनोरंजन उद्द्योग, खास तौर पर फिल्मों ने महिलाओं के साथ ज्यादातर अन्याय ही किया है. एक महिला पर बीतने वाली सबसे भयानक ट्रेजडी “बलात्कार” को फिल्मों में सक्सेस कंटेंट और मसाला एलिमेंट की तरह यूज किया जाता रहा है. और लगभग हर फिल्म में महिला को उसकी सोकॉल्ड इज्ज़त लुटने के बाद हासिए  पर धकेल कर फिल्म को इज्ज़त लूटने वाले पुरुष और इज्ज़त बचने वाले पुरुष का संघर्ष मात्र दिखया जाता रहा है. इन फिल्मों और विज्ञापनों ने कहीं न कहीं महिलाओं और उनके शरीर को एक उत्पाद की तरह पेश करने और उसे मुनाफे के लिए प्रयोग करने की कोशिश की है. तभी कहीं पंखे के विज्ञापन में फ्रांक उड़ाती लड़की तो कहीं परफ्यूम के विज्ञापनों में लड़के की ओर पागलों सी भागती, लिपटती, यहाँ तक कि शर्ट फाड़ती लड़कियां दिखाई गयी है. उदाहरणों की  फेहरिस्त बहुत लंबी है.

फ़िल्मी गानों के जरिये भी महिलाओं को चिकनी चमेली बना कर पव्वा पिलाया गया तो कभी शीला और मुन्नी नाम की लाखों लड़कियों की जिंदगी में जहर घोल दिया गया. टिंकू जिया को इश्क का मंजन कराती लड़की से ले कर फेविकोल से सीने में तस्वीर चिपकाने की नसीहत देने वाली तक कोई भी लड़की इस देश की आम लड़की नहीं लगती तो फिर न जाने ये कला और कलाकार कौन सी लड़की की तस्वीर दिखा रहे है जो हमारे समाज के लिए बिलकुल ही “एलियन” है.

मुझे तब बिलकुल आश्चर्य नहीं होता जब दिल्ली बलात्कार कांड के विरोध प्रदर्शन में शामिल एक लड़की अखबार में ये बयान देती है कि हनी सिंह अश्लील गाने गाता है पर उसमे सिर्फ मनोरंजन है और कुछ नहीं...मैं जानता हूँ कि आजकल की पीढ़ी कला के नाम चल रहे “कल्चरल इम्पिरिलिजम” को नहीं समझ पा रही है. तभी तो एक छोटी सी बच्ची गुड़ियों से खेलने की उम्र में हॉट दिखना चाहती है, एक छोटा बच्चा “मैं हूँ बलात्कारी” गाना गाते पाया जाता और बड़े हो कर हनी सिंह जैसा बनना चाहता है. जिस उम्र में हम सिर्फ फ्रेंड बनाया करते थे उस उम्र में ये बच्चे बॉय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड बनाने में लगे है. अब इसे बदलती पीढ़ी का बदलाव कहें या बहकती पीढ़ी का बहकाव.

ये वो समय है जब पूनम पांडे, राखी सावंत और उनके प्रसिद्धि पाने के सस्ते तरीके लड़कियों को लुभाने लगे हैं और वो सत्ता, ताकत, रुतबा और दौलत के लिए फिजा मोहम्मद, भंवरी देवी, मधुमिता शुक्ला और गीतिका शर्मा बन कर अपने दुखद अंजाम अंत तक पहुँच रही है.

आज दामिनी बलात्कार कांड ने पूरे देश को जगा कर रख दिया है इसलिए जरूरी है कि हम हर विषय और हर स्तर पर चर्चा करें और जहाँ से भी हमारी वैल्यू सिस्टम में सेंध लग रही हो उसे ठीक करें. हमें स्वतंत्रता और स्वछंदता में भेद करना होगा.ये जानना होगा कि जिम्मेदार आज़ादी स्वतंत्रता होती है और बहकी हुई आज़ादी स्वछंदता. स्वतंत्रता के नाम पर समाज में गलत मूल्य स्थापित करने वाली हर चीज का प्रोटेस्ट करना होगा चाहे वो कला हो या कलाकार. तभी हम एक ऐसा हिन्दुस्तान बना पाएंगे जो सारे जहाँ से अच्छा होगा.

 तुम्हारा अनंत  



दैनिक जागरण (i-next) में 04-1-2013 को लेख प्रकाशित]  पढ़ने के लिए लिंक क्लीक करें http://inextepaper.jagran.com/79704/I-next-allahabad/04.01.13#page/11/2







1 comment:

jaadoo said...

bahot badhiya likhte hai aap.. Me apka bahot bada fan hun... Aapke lekh mere lye upyogi hai.. Me aap se ejaazat (aagya) chahta hun.. Kya me aapke lekh or vicharo ko istemal kar sakta hun apne lye... Mujhe likhna nahi aata :( ... Mere mann ke vicharo ko sabd chahiye...
(Aapka aagyakari.. Arun)