Saturday, June 1, 2019

जो बात कहनी थी वो कही ही नहीं गई !!

वो अपने जूतों में कंकड़ डाल कर चलती थी और जैसे जैसे कंकड़ चुभते थे कविताएं फूटती थीं। उसकी कविताओं में चुभन और दर्द एड़ियों में चुभे हुए पत्थरों के हमशक्ल थे। जैसे कोई तीर आपके दिल में चुभे और आप उसी समय पेंटिंग बना रहे हों तो चाहे जो भी चित्र बनेगा उसमें आपका घायल दिल और क़ातिल तीर ज़रूर होगा।

बच्चों की आवाज़ में बोलते हुए वो लड़की कान से दिल तक एक सुरंग बना लेती थी। सांप से डरती थी और इंजेक्शन देख कर जान निकाल कर ताख पर रख देती थी। उसकी अफसुर्दगी का रंग पीला था। जो उसने बरसों रात में हल्दी दूध पीते हुए और पीला चावल खाते हुए हासिल किया था। एक हज़ार सपने अपनी तकिया के नीचे दबाए एक उचाट नींद को थपकियाँ देती वो लड़की एक दिन इत्र की तरह हवा में घुल गयी। जैसे कोई माया हो या कोई साया।

सवाल बरगद के पेड़ पर उल्लूओं की तरह उल्टे टंगे रहे और किसी टूटे किले के पीछे किसी चटकी हुई दीवार में उभरी हुई देवी प्रतिमा के ठीक बगल एक उठान पर निढाल पड़ा स्मृतियों का एक टुकड़ा कपूर बन जाने के लिए प्रार्थनाएं करता रहा। पत्थरों से टकरा टकरा के आदमी भी पत्थर हो जाता है शायद !! हवा में ये वाक्य गूंजा और यमुना में दूर मछवारे ने जाल फेंक दिया। मछलियों के भाग्य में तैरने और मरने के बीच कुछ नहीं लिखा था। जाल में फंसी मछली मर गईं और नहीं फंसी मछली तैरती रहीं।

ऐसे ही सपने में प्रकट होता है कोई दृश्य और यथार्थ का अर्थ बदल जाता है। जैसे बरसात की बूंद माटी पर गिरती है। जैसे सूखेपत्ते ज़मीन पर गिरते हैं। वैसे नहीं गिरता आदमी वैसे नहीं गिरता आंसू। आदमी बाबरी मस्ज़िद की तरह गिरता है और आँसू एफिल टॉवर की तरह। सौ बात कहने के बाद बस एक बात ही कही गई कि जो बात कहनी थी वो कही ही नहीं गई !!

अनुराग अनंत !!

राम जी से सवाल है !!

राम ईश्वर हैं। वो लोक देवता हैं। भारतीय चेतना के प्रतीक कहे जाते हैं। बचपन से ही क्योंकि वैष्णव परिवार में पैदा हुआ इसलिए राम चरित्र मानस का पाठ करते रहा। घर में हनुमान जी की मंदिर है। जहाँ हर मंगल शनि सुंदर कांड का पाठ होता है। हमारे ताऊजी थे, अशोक पांडेय। 1969 में इलाहबाबाद विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष रहे। संयुक्त उत्तर प्रदेश में प्रदेश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। उन्होंने शादी नहीं की। अपने समय में राजनीति के उरूज़ पर थे। फिर ऐसा वैराग्य लगा कि हम बच्चों में ही ख़ुद को खपा दिया। घर में रहते हुए कोई कैसे सन्यासी हो जाता है। हमनें अपनी आंखों से देखा था। उनसे मैं ख़ूब बातें किया करता था। अस्सी के दशक में राजनीति छोड़ने के बाद वो घर पर ही रहे और ख़ुद को राम भक्ति में लगा दिया। भगवान राम के अनन्य भक्त।

लगभग पैतीस सालों से घर पर सुंदरकांड हर मंगल शनि अखंड रूप से अनवरत जारी है। बचपन में मैं भगवान राम से बहुत प्रभावित था। फिर जब सोचने समझने लगा और ये चेतना आई कि अपने आदर्श के प्रति आलोचनात्मक होना हमारा कर्तव्य भी है और अधिकार भी। दरअसल इस तरह हम स्वयं और अपने आदर्श के प्रति भी न्याय कर रहे होते हैं। एक परिमार्जन की प्रक्रिया का सूत्रपात करते हैं। मेरे राम जी को लेकर बहुत सारे प्रश्न रहे। जिनका ठीक ठीक उत्तर कभी नहीं मिल सका। इसलिए मेरा आकर्षण शिव जी के चरित्र की तरह मुड़ा और शिव के चरित्र में मुझे वो उद्दाता दिखी। जिसे मैं जीवन मूल्य मानता था। वो बराबरी पसंदगी, सादगी, आजादी के पक्षधर, महिलाओं, निर्बलों और हांसिये के लोगों के लिए करुणा और साथी भाव।

भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप, सती को भुजा में उठाए तीनों लोकों में विचरता प्रेमी रूप, वचन में बंधा वो त्रिकाल दर्शी जिसे मालूम है भष्मासुर के मन की बात फिर भी वरदान देने में छल ना करने वाला निश्छली, दक्ष के घर जाने की ज़िद करती पत्नी पर अपना अधिकार आरोपित ना करके हर तरह के अतिक्रमण को नकारते आदर्श पुरूष। और बहुत सारी छवियां मेरे हृदय को शिव जी के चरित्र से जोड़ गईं।

वहीं राम जी को लेकर मुख्य प्रश्न माँ सीता के प्रति उनका व्यवहार रहा। वो जनकदुलारी जिसने भगवान राम के पीछे पीछे चलना स्वीकार किया, हर दुख में संभागी बनी। बिना कोई शिकायत किए वन में भी भगवान राम की सेवा करतीं रहीं। उन्हीं सीता को जब रावण हर ले गया तो राम जी ने सीता जी की परीक्षा ली। उन्हें गर्भवती होते हुए भी जंगल में छोड़ दिया। चक्रवर्ती सम्राट राम के बच्चे लवकुश जंगल मे जन्में। ये क्यों ? क्या राम को सीता पर विश्वास नहीं था ? या प्रभु समाज के नज़र में मर्यादा पुरुषोत्तम बने रहने के लिए सीता के प्रति इतने निर्मम हुए। वो समाज क्या माँ सीता को भगवान राम से ज़्यादा जानता था? भगवान को सीता जी से ज़्यादा समाज की फ़िक्र थी? वो समाज जो एक महिला के विप्पतिकाल में भी उसकी त्रासदी, पीड़ा परेशानी की नहीं उसकी सुचिता को ज़्यादा महत्व देता है? और शक के आधार पर भी स्त्री को कई बार दारुण यातनाएं देता है। और फिर भगवान ने तो एक बार माँ सीता की अग्नि परीक्षा ले ली थी फिर भी उन्हें एक पुरूष अहम में डूबे व्यक्ति के कहने पर भरे पेट जंगल भेज दिया ? माँ ने तो लवकुश को भी प्रश्न नहीं करने दिया था। पर पुत्र का हृदय माँ की पीड़ा को महसूसता है, उद्धेलित, आंदोलित होता रहता है। इसलिए लवकुश ने भगवान राम जी से भरी सभा में प्रश्न किया था। और मैं भी सीता जी में अपनी माँ देखता हूँ। इसलिए मेरा भी भगवान राम से ये सवाल रहेगा। और इसका उचित उत्तर जब तक नहीं मिलता मेरा उनका वही रिश्ता रहेगा जो आज है। इसका ये कतई मतलब नहीं कि राम मेरे आदरणीय नहीं पर जब तक उचित उत्तर नहीं मिलता तब तक वो मेरे स्वयं के लिए अनुकरणीय नहीं हैं।

झूठ क्या है ?

झूठा आदमी अच्छा नहीं होता। लेकिन तब जब वो जो झूठ बोले अगर वो झूठ अच्छा नहीं है तब। मतलब झूठ भी अच्छा होता है क्या ? हाँ झूठ का मंतव्य और उसका प्रभाव उसे अच्छा और ख़राब बनाते हैं। आपकी मंशा ही निर्धारित करती है कि झूठ कैसा है और वो झूठ भी है या नहीं। वो अपराध की श्रेणी में आता है कि नहीं। उस झूठ से पड़ने वाला प्रभाव कैसा है ? ये सारे तत्व किसी झूठ को झूठ बनाते हैं।

कोई ग़रीब जिसके घर में ठीक से खाना नहीं है अगर बाहर लोगों से कहता है कि उसने भर पेट खाना खाया है तो ये उसका आत्मस्वाभिमान है और दैन्यता को नकारने की प्रवृति है। कोई व्यक्ति किसी मित्र की शर्ट पहन के आया है तो वो उस शर्ट को ख़ुद की शर्ट कहेगा। ये भी झूठ नहीं है। कोई प्रेमी किसी से उधार पैसे लेकर आया है और उसकी प्रेमिका उन पैसों के बारे में पूछेगी तो वो ख़ुद के पैसों से खरीदा हुआ उपहार ही कहेगा ये भी झूठ नहीं है। क्योंकि यहाँ मंशा किसी को घोखा देना नहीं है। ये परिस्थिति हैं जिनमें उसने ऐसा किया। वो व्यक्ति किस परिस्थिति में हैं। उसकी मंशा, उसका धेय्य क्या है। वो यहाँ नज़र में रखना होगा। यहाँ वो महान नहीं बनना चाहता और ना ही ख़ुद को अच्छा दिखाना चाहता है। परंतु अपनी परिस्थिति से डील करने का यही तरीका उसे दिखा। जो आदर्श स्थिति में ग़लत तो है पर अपराध नहीं है।

मुझे हिंदी के प्रतिभाशाली लेखक भुवनेश्वर का एक किस्सा याद आता है। उन्होंने प्रेमचंद से झूठ बोलकर पैसे लिए, प्रेमचंद जानते थे। उनके एक अन्य शिष्य/सहयोगी ने जब पूछा तो उन्होंने कहा कि भुवनेश्वर नहीं वो उसकी परिस्थिति बोल रही है। ये झूठ उसका चरित्र नहीं है। उसकी प्रतिभा पर मुझे विश्वास है। इस झूठ का मंतव्य मुझे धोखा देना नहीं है। इसलिए ये अपराध नहीं है। गलती है पर ऐसी भी नहीं कि जिसके लिए भुवनेश्वर के चरित्र पर प्रश्न किया जाए।

पर कुछ झूठ लोगों को ठगने, उनको छलने के मंतव्य से बोले जाते हैं। और ये झूठ शक्तिशाली द्वारा बोले जाते हैं। ये अपराध है। क्योंकि यहाँ मंशा ही दोहन और हनन होता है। तो एक कसौटी ये भी हो सकती है। निर्बल और सबल में, निर्बल का झूठ क्षम्य है और सबल का अपराध। क्योंकि सबल को झूठ बोलने की कोई आवश्यकता नहीं और निर्बल के लिए झूठ कई बार मज़बूरी में रास्ते की तरह प्रकट होता है।

तुम्हारा मन कोई किला नहीं था !!

तुम्हारा मन कोई किला नहीं था जिसे मैं जीतता और न मेरा प्रेम कोई युद्ध जो जीत के लिए किया गया हो। तुम अपनी हाँ, ना के साथ। सत्कार, तिरस्कार के साथ। उलझन और विचलन के साथ आई थी और उसी तरह आज भी हृदय में हो।

मैं अपनी निश्चलता-कुटिलता, पौरुषीय दम्भ-मानवीय सरलता, विचारों के उलझाओ-भावनाओं के बहाव, सपनों के गढ़न-झूठे कथन, भविष्य के डर और प्रेम के स्वर के साथ तुममें कहीं बचा हूँ कि नहीं मुझे नहीं मालूम।

हम प्रेम में बदलते हैं और जो बदलते हैं। वो हमारा प्रेमी अपने भीतर सुरक्षित कर लेता है। क्योंकि वो हमारे क्षरण को बर्दास्त नहीं कर सकता। हम जैसे हैं, वैसे ही प्रेम में पूर्ण और स्वविकार्य होते हैं। और जो कुछ भी हममें बदलता है वो प्रकृति अकाट्य परिवर्तन नियम की परिणीति है। सम्मिश्रण का प्रभाव है। यही जीवन है। यही प्रेमी में खो कर खुद को पाना है। यही कुछ से बहुत कुछ, सबकुछ हो जाना है।

कविता की काया !!

कविता की काया में माया नहीं होती, छाया होती है। आपके अतीत की। और बयान होता है उस वारदात का कि कैसे आप सूरज को बचाने के लिए लड़े थे और कई बार अपने हिस्से का भी सूरज गवां बैठे थे।

कविता वो कठघरा है, जहां सच बोलने के लिए आपको किसी कुरान, किसी गीता की जरूरत नहीं पड़ती। कविता वो ज़मीन है, जिसे आप अपनी हड्डियों से जोतते हैं और खुद को बो देते हैं। किसी और के दिल मे उगने के लिए, स्मृतियों में खिलने के लिए, घयाल एकांत में लहलहाने के लिए।

कविता वो रुई का फाहा है जिसे आप ख़ुद में डुबाते हैं किसी का ज़ख्म सहलाने के लिए।

कविता वो भाषा है जिसे आप प्रयोग करते हैं। वो बात समझाने के लिए जिसे आप ख़ुद नहीं समझे हैं। कविता वो ख़ुफ़िया रास्ता है जिससे आप चुपके से निकल आते हैं, वहां से, जहां आप उलझे हैं।