Saturday, June 1, 2019

कविता की काया !!

कविता की काया में माया नहीं होती, छाया होती है। आपके अतीत की। और बयान होता है उस वारदात का कि कैसे आप सूरज को बचाने के लिए लड़े थे और कई बार अपने हिस्से का भी सूरज गवां बैठे थे।

कविता वो कठघरा है, जहां सच बोलने के लिए आपको किसी कुरान, किसी गीता की जरूरत नहीं पड़ती। कविता वो ज़मीन है, जिसे आप अपनी हड्डियों से जोतते हैं और खुद को बो देते हैं। किसी और के दिल मे उगने के लिए, स्मृतियों में खिलने के लिए, घयाल एकांत में लहलहाने के लिए।

कविता वो रुई का फाहा है जिसे आप ख़ुद में डुबाते हैं किसी का ज़ख्म सहलाने के लिए।

कविता वो भाषा है जिसे आप प्रयोग करते हैं। वो बात समझाने के लिए जिसे आप ख़ुद नहीं समझे हैं। कविता वो ख़ुफ़िया रास्ता है जिससे आप चुपके से निकल आते हैं, वहां से, जहां आप उलझे हैं।

No comments: