Saturday, June 1, 2019

झूठ क्या है ?

झूठा आदमी अच्छा नहीं होता। लेकिन तब जब वो जो झूठ बोले अगर वो झूठ अच्छा नहीं है तब। मतलब झूठ भी अच्छा होता है क्या ? हाँ झूठ का मंतव्य और उसका प्रभाव उसे अच्छा और ख़राब बनाते हैं। आपकी मंशा ही निर्धारित करती है कि झूठ कैसा है और वो झूठ भी है या नहीं। वो अपराध की श्रेणी में आता है कि नहीं। उस झूठ से पड़ने वाला प्रभाव कैसा है ? ये सारे तत्व किसी झूठ को झूठ बनाते हैं।

कोई ग़रीब जिसके घर में ठीक से खाना नहीं है अगर बाहर लोगों से कहता है कि उसने भर पेट खाना खाया है तो ये उसका आत्मस्वाभिमान है और दैन्यता को नकारने की प्रवृति है। कोई व्यक्ति किसी मित्र की शर्ट पहन के आया है तो वो उस शर्ट को ख़ुद की शर्ट कहेगा। ये भी झूठ नहीं है। कोई प्रेमी किसी से उधार पैसे लेकर आया है और उसकी प्रेमिका उन पैसों के बारे में पूछेगी तो वो ख़ुद के पैसों से खरीदा हुआ उपहार ही कहेगा ये भी झूठ नहीं है। क्योंकि यहाँ मंशा किसी को घोखा देना नहीं है। ये परिस्थिति हैं जिनमें उसने ऐसा किया। वो व्यक्ति किस परिस्थिति में हैं। उसकी मंशा, उसका धेय्य क्या है। वो यहाँ नज़र में रखना होगा। यहाँ वो महान नहीं बनना चाहता और ना ही ख़ुद को अच्छा दिखाना चाहता है। परंतु अपनी परिस्थिति से डील करने का यही तरीका उसे दिखा। जो आदर्श स्थिति में ग़लत तो है पर अपराध नहीं है।

मुझे हिंदी के प्रतिभाशाली लेखक भुवनेश्वर का एक किस्सा याद आता है। उन्होंने प्रेमचंद से झूठ बोलकर पैसे लिए, प्रेमचंद जानते थे। उनके एक अन्य शिष्य/सहयोगी ने जब पूछा तो उन्होंने कहा कि भुवनेश्वर नहीं वो उसकी परिस्थिति बोल रही है। ये झूठ उसका चरित्र नहीं है। उसकी प्रतिभा पर मुझे विश्वास है। इस झूठ का मंतव्य मुझे धोखा देना नहीं है। इसलिए ये अपराध नहीं है। गलती है पर ऐसी भी नहीं कि जिसके लिए भुवनेश्वर के चरित्र पर प्रश्न किया जाए।

पर कुछ झूठ लोगों को ठगने, उनको छलने के मंतव्य से बोले जाते हैं। और ये झूठ शक्तिशाली द्वारा बोले जाते हैं। ये अपराध है। क्योंकि यहाँ मंशा ही दोहन और हनन होता है। तो एक कसौटी ये भी हो सकती है। निर्बल और सबल में, निर्बल का झूठ क्षम्य है और सबल का अपराध। क्योंकि सबल को झूठ बोलने की कोई आवश्यकता नहीं और निर्बल के लिए झूठ कई बार मज़बूरी में रास्ते की तरह प्रकट होता है।

No comments: