Saturday, June 1, 2019

राम जी से सवाल है !!

राम ईश्वर हैं। वो लोक देवता हैं। भारतीय चेतना के प्रतीक कहे जाते हैं। बचपन से ही क्योंकि वैष्णव परिवार में पैदा हुआ इसलिए राम चरित्र मानस का पाठ करते रहा। घर में हनुमान जी की मंदिर है। जहाँ हर मंगल शनि सुंदर कांड का पाठ होता है। हमारे ताऊजी थे, अशोक पांडेय। 1969 में इलाहबाबाद विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष रहे। संयुक्त उत्तर प्रदेश में प्रदेश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। उन्होंने शादी नहीं की। अपने समय में राजनीति के उरूज़ पर थे। फिर ऐसा वैराग्य लगा कि हम बच्चों में ही ख़ुद को खपा दिया। घर में रहते हुए कोई कैसे सन्यासी हो जाता है। हमनें अपनी आंखों से देखा था। उनसे मैं ख़ूब बातें किया करता था। अस्सी के दशक में राजनीति छोड़ने के बाद वो घर पर ही रहे और ख़ुद को राम भक्ति में लगा दिया। भगवान राम के अनन्य भक्त।

लगभग पैतीस सालों से घर पर सुंदरकांड हर मंगल शनि अखंड रूप से अनवरत जारी है। बचपन में मैं भगवान राम से बहुत प्रभावित था। फिर जब सोचने समझने लगा और ये चेतना आई कि अपने आदर्श के प्रति आलोचनात्मक होना हमारा कर्तव्य भी है और अधिकार भी। दरअसल इस तरह हम स्वयं और अपने आदर्श के प्रति भी न्याय कर रहे होते हैं। एक परिमार्जन की प्रक्रिया का सूत्रपात करते हैं। मेरे राम जी को लेकर बहुत सारे प्रश्न रहे। जिनका ठीक ठीक उत्तर कभी नहीं मिल सका। इसलिए मेरा आकर्षण शिव जी के चरित्र की तरह मुड़ा और शिव के चरित्र में मुझे वो उद्दाता दिखी। जिसे मैं जीवन मूल्य मानता था। वो बराबरी पसंदगी, सादगी, आजादी के पक्षधर, महिलाओं, निर्बलों और हांसिये के लोगों के लिए करुणा और साथी भाव।

भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप, सती को भुजा में उठाए तीनों लोकों में विचरता प्रेमी रूप, वचन में बंधा वो त्रिकाल दर्शी जिसे मालूम है भष्मासुर के मन की बात फिर भी वरदान देने में छल ना करने वाला निश्छली, दक्ष के घर जाने की ज़िद करती पत्नी पर अपना अधिकार आरोपित ना करके हर तरह के अतिक्रमण को नकारते आदर्श पुरूष। और बहुत सारी छवियां मेरे हृदय को शिव जी के चरित्र से जोड़ गईं।

वहीं राम जी को लेकर मुख्य प्रश्न माँ सीता के प्रति उनका व्यवहार रहा। वो जनकदुलारी जिसने भगवान राम के पीछे पीछे चलना स्वीकार किया, हर दुख में संभागी बनी। बिना कोई शिकायत किए वन में भी भगवान राम की सेवा करतीं रहीं। उन्हीं सीता को जब रावण हर ले गया तो राम जी ने सीता जी की परीक्षा ली। उन्हें गर्भवती होते हुए भी जंगल में छोड़ दिया। चक्रवर्ती सम्राट राम के बच्चे लवकुश जंगल मे जन्में। ये क्यों ? क्या राम को सीता पर विश्वास नहीं था ? या प्रभु समाज के नज़र में मर्यादा पुरुषोत्तम बने रहने के लिए सीता के प्रति इतने निर्मम हुए। वो समाज क्या माँ सीता को भगवान राम से ज़्यादा जानता था? भगवान को सीता जी से ज़्यादा समाज की फ़िक्र थी? वो समाज जो एक महिला के विप्पतिकाल में भी उसकी त्रासदी, पीड़ा परेशानी की नहीं उसकी सुचिता को ज़्यादा महत्व देता है? और शक के आधार पर भी स्त्री को कई बार दारुण यातनाएं देता है। और फिर भगवान ने तो एक बार माँ सीता की अग्नि परीक्षा ले ली थी फिर भी उन्हें एक पुरूष अहम में डूबे व्यक्ति के कहने पर भरे पेट जंगल भेज दिया ? माँ ने तो लवकुश को भी प्रश्न नहीं करने दिया था। पर पुत्र का हृदय माँ की पीड़ा को महसूसता है, उद्धेलित, आंदोलित होता रहता है। इसलिए लवकुश ने भगवान राम जी से भरी सभा में प्रश्न किया था। और मैं भी सीता जी में अपनी माँ देखता हूँ। इसलिए मेरा भी भगवान राम से ये सवाल रहेगा। और इसका उचित उत्तर जब तक नहीं मिलता मेरा उनका वही रिश्ता रहेगा जो आज है। इसका ये कतई मतलब नहीं कि राम मेरे आदरणीय नहीं पर जब तक उचित उत्तर नहीं मिलता तब तक वो मेरे स्वयं के लिए अनुकरणीय नहीं हैं।

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