Thursday, September 8, 2011

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ''

                                   '' सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ''
                                  '' मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए ''
    
कुछ यही स्वर थे रामलीला मैदान में बैठे रालेगन सिद्धि के उस आम आदमी के ,जो आत्महनन के रास्ते जनसंवेदना तक पहुंचना चाहता  था , पर जब व्यक्तिगत   तौर पर मैं  ये तलाशने निकलता हूँ की क्या आधारभूत कारण  है जो समाज में भ्रष्टाचार एक सचाई की तरह व्याप्त  हो गया है ,हमने इसे अपने जीवन का हिस्सा मान लिया है ,तब मुझे इस सच्चाई के नींव  में एक सच बैठा दिखता  है वो है हमारे भीतर सवेदना और दायित्व बोध का सतत क्षरण ,तभी तो एक अफसर  किसी गरीब के दवाई के पैसे से भी रिश्वत मांग लेता है ,राशन वितरक  भूंखे बच्चों का पेट काट  कर राशन की काला  बाजारी करता है ,सड़क पर चलते हुआ नवजवान ये भूल जाता है ,की उसकी बहन भी घर से अकेले बहार निकली होगी ,कालेजों में नशा करते ,अय्याशी करते छात्र ये भूल जाते हैं की माँ बाप की आँखों में कुछ सपने पल रहे होंगे , संसद और विधान मंडलों में जाने के बाद जन प्रतिनिधि जनता  को भूल ही जाता है ,उसकी भावनाओं का मजाक उड़ाता है, सदन में  जूते उछाले जाते हैं , गलियाँ दी जाती है और संसद की  गरिमा को ठेस पहुंचाया  जाता है ,जब समाज में   इस तरह का घन घोर अँधेरा छाता है  ,तब कहीं जा कर किसी आन्दोलन कि जमीन तैयार होती है और वो आन्दोलन जनता के साथ जुड़ता है, उसकी आवाज़ को बुलंद करता है ,जैसा कि हम सभी जानते है कि समाज की  दशा और दिशा बहुत हद तक सत्ता और व्यवस्था के हांथों निर्धारित होती  है और जनता के भीतर भी  स्वेच्छा या अनिच्छा से सत्ता और व्यवस्था  के  लक्षण परिलक्षित होते है पर आन्दोलन इस चुप्पी को तोड़ने का काम  करता  है, जनता में व्याप्त  सामाजिक और राजनीतिक बुराई को दूर करने का करने का काम करता है , तभी जा कर ये आन्दोलन सही अर्थों में जनांदोलन कहलाता है वरना ये मात्र  एक प्रदर्शन बन कर रहा जाता है ,जिन महान आदर्शों को ले कर आन्दोलन चल रहा है ,सब से पहले ये आदर्श आन्दोलन के कार्यकर्ताओं के द्वारा आत्मसात किया जाना चाहिए ,चूंकि आत्मपरिवर्तन  के बिना जगपरिवर्तन  कि प्रक्रिया सफल हो ही नहीं सकती, मेरा आन्दोलन  के आधारभूत लक्षणों पर चर्चा करने का कारण ये है कि  ,जब अन्ना का कथित जन आन्दोलन चरम पर था, रामलीला मैदान में जीत का  जस्न मनाया जा रहा था तभी वहां आन्दोलनकारियों के द्वारा पानी कि बोतलें , चाय नाश्ते कि दुकान ,और फूटपाथ पर दुकान वालों कि दुकानें  लूटी जा रही थी , इस तरह कि घटना से आन्दोलन और आन्दोलन का नेतृत्व दोनों कटघरे में आ जाते है ,और जनांदोलन कि संज्ञा पा चुका आन्दोलन जन भावनाओं पर अघात करता हुआ नज़र आता है ,तब ऐसी स्थिति  में ये जरूरी हो जाता है कि अन्ना आन्दोलन के आदर्श को ले कर जनता के बीच  जाएँ  ,और उनसे उनके सच्चे ,सार्थक ,और रचनात्मक समर्थन कि मांग करे ,ताकि ये आन्दोलन अपनी आधारभूत कसौटी  पर सही उतर सके ,और उनके आन्दोलन में सही और सच्चे कार्यकर्ता  जुड़ सके .न कि मीडिया के द्वारा उतेजित किये गए लोग ,जिन्हें ये भी नहीं मालूम है  कि वो  किसलिए रामलीला के मैदान में आये है ,लोकपाल किस बला का नाम है ,और जो सिर्फ रिश्वत को ही भ्रष्टाचार समझते हैं  ,उनसे आन्दोलन को सार्थक अंत तक पहुंचाने कि उम्मीद भी निरर्थक है ,मेरा मानना है कि  आन्दोलन तभी जन आन्दोलन बन पायेगा जब इस आन्दोलन के कर्यकर्ताओं में सामाजिक और राजनीतिक समझ होगी ,वे फसबुक और ट्विटर पर लिख कर ,झंडा लहरा कर नहीं बल्कि  जनता के बीच जागरूकता , सवेदना ,और दायित्व बोध जगा कर आन्दोलन करें ,देशभक्ति दिखाएं , तथा  कथित देश भक्ति कि गंगा में हाँथ धुलने के बजाय  सच्चे  परिवर्तन कि गंगा को उतरने वाले भागीरथ बनने के लिया तैयार रहें  , वो ये न कहे कि'' अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं ''बल्कि कहें ''अन्ना हम सब मिल संघर्ष करें हम सब एक दूजे के साथ है '' 

                                                                तुम्हारा -- अनंत

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