Sunday, June 1, 2014

अरविन्द ये सबकुछ ड्रामा लगता है !!

अरविन्द का यही ड्रामा सबसे ज्यादा मुझे अप्पति जनक लगता है. इमोशनल अत्याचार कर रहे हो यार ये चिट्ठी बाजी कर के, तुम बार बार क्या राहुल गांधी की तरह त्याग की बंशी बजाते रहते हो, एक तरफ तुम क्रांतिवीर बनते हो और दुसरी तरफ दस दिन जेल जाने पर आंसू बनाने लगते हो. दुहाई देते हो, इस लड़ाई में मैं भूखा रहा, पुलिस से लाठियां खाई, अपमान सहा और अब देखो मैं तिहाड जेल में हूँ.

क्या चाहते हो तुम तुम्हे सत्ता सर पर बैठा कर लोरी सुनाये, अरे जनता के लिए लड़ रहे हो तो ये स्वाभाविक है. उसमे जनता पर ऋण क्यों जताते हो कि देखो मैं त्याग की मूर्ती हूँ. मैंने अफसरी छोड़ी, और आज जेल में हूँ. अरे जनता ने तुम्हे इसी लिए मुख्यमंत्री भी तो एक साल की नौटंकी में ही बना दिया. काम कम कर रहे हो, चिल्ला ज्यादा रहे हो, अरविन्द तुम, ये तुम्हे और तुम्हारी पार्टी दोनों को विनाश की ओर ले जायेगा.

जनता के लिए लड़ने वाले लोग त्याग का रोना नहीं रोते और जो रोते हैं उनकी नियत में काला होता है. वो सत्ता के भूखे होते है. मैंने कहीं नहीं पढ़ा की कभी सुभाष बाबू ने कहा हो कि जनता देखो मैंने तुम्हारे लिए अफसरी छोड़ दी और अब मैं देश दुनिया की ख़ाक छान रहा हूँ. भगत सिंह ने कभी नहीं जताया कि वो जनता के लिए शहादत दे रहे हैं. 

तुम भी एक आम से राजनेता हो, जिसे सत्ता चाहिए, जिसे सरकार बनानी है, जो बहुत जल्दबाज सनही और ओछा है, तुम जब भाषण देते हों तो हर तीसरी बात पर कहते हो मैं इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में अफसर था, मैंने नौकरी छोड़ का महान काम किया. जनता पर अहसान किया जाता देते हो. अरे नौकरी न छोड़ते तो मुख्यमंत्री कैसे बनते, और देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना कैसे देखते.

तुम्हे तो इस बात का गर्व होना चाहिए, कि खुशी से तुमने मानव सम्मान की और सच्चे लोकतंत्र की लड़ाई के लिए संघर्ष का रास्ता चुना है. तुमने एक साधारण तुच्छ जीवन छोड़ कर एक महान लक्ष्य को समर्पित स जीवन जीने का फैसल किया है. तुम एक साधारण जीवन रूपी झोपडी से निकल कर मानव स्वतन्त्रता के लक्ष्य को समर्पित जीवन रूपी महल में रहने आये हो. इस राह पर मिलने वाले हर कष्ट को खुशी से सलाम करो, हंस कर गले लगाओ, त्याग गान मत गाओ. 

क्या तुमने कभी विनायक सेन को ये कहते सुना कि यार मैं तो एक बड़ा डाक्टर था मैं जनता के लिए जंगलों में भटक रहा हूँ, मैं महान हूँ. बहुत ओछी हरकत कर रहे हो यार. यकीन मानों इससे तुम्हारा राजनीति पतन भी हो रह है और तुम लोगों कि नजरों से भी गिर रहे हो. ये सब ड्रामेबाजी कर के.

इस देश में न जाने कितने लोग हैं जो इस पक्षपाती व्यवस्था में सलाखों ने पीछे हैं पर मैंने कभी ऐसा रुदन नहीं सुना. तुम खुद को जरूरत से ज्यादा महान और त्यागी समझने लगे हो, जैसा है बिलकुल भी नहीं है. तुम और तुम्हारी पार्टी भी भारत की अन्य पार्टियों जैसी ही एक पार्टी है, जोड़-तोड़, गुणा-भाग करने वाली पार्टी, सीट बढ़ाने और चुनाव लड़ने वाली पार्टी, सरकार बनाने और गिराने वाली पार्टी. 

मैं तुम्हारे इस ओछे कृत्य की निंदा करता हूँ, जनता पर अहसान जाताना बंद करो, अरविन्द केजरीवाल! वैसे इस बार जो चिठ्ठी तुम भेज रहे हो, उसमे बच्चे समोसे खायेंगे.

अनुराग अनंत
"हिंदुस्तान" दैनिक में प्रकाशित !! 

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