Sunday, June 15, 2014

तुम्हारी सदिच्छा और मेरे सरोकार !!

धर्म की जय हो,
अधर्म का नाश हो.
प्राणियों में सद्भावना हो,
विश्व का कल्याण हो......वो ये कह रहे थे और मैं सोचा रहा था कि ये कौन तय करेगा कि धर्म क्या है और अधर्म क्या ? सद्भावना की परिभाषा को किस कसौटी पर कसा जायेगा.कल्याण के क्या मानक होंगे और कल्याण कैसे किया जायेगा.

धर्म की जय के लिए ही तो तालिबान अफगानिस्तान और पाकिस्तान में इंसानी जिंदगी के सारे रंगों को बेरंग कर देना चाहता है.धर्म की जय के लिए ही मलाला युसूफ जई को गोली मारी गयी थी, केनिया के एक मॉल कई निर्दोषों की हत्याएं कर दी गयीं थी. धर्म की जय के लिए ही गूंजे थे नारे "अभी तो बस ये झांकी है आगे मथुरा, काशी है" और एक पुरानी आस्था की जर्जर ईमारत को गुलामी का प्रतीक कहते हुए धराशाही कर कर दिया गया था. धर्म की जय सुनिश्चित करने के लिए ही तो पूरा उपमहाद्वीप जल उठा था, और न जाने कितनी औरतों को ये जताया गया था कि उनका शरीर एक इंसानी देह नहीं है बल्कि एक किला है जिस पर पौरुष का झंडा गाडा जायेगा और धर्म की जय सुनिश्चित की जायेगी. धर्म की जय के नाम पर ही यूरोप में औरतों को जलाया गया था और धर्म की जय के ही खातिर धर्म के विजय दूत दलितों को जानवर से भी बद्दतर जिंदगी खैरात में देते थे.

अधर्म के नाश करने के लिए ही तो अमेरिका घुसा था अफगानिस्तान में, और ईराक में. अधर्म के नाश के नाम पर आपरेशन ग्रीन हंट का अश्वमेघ यज्ञ किया गया. अधर्म के नाश के लिए अभी परम प्रिय मोदी जी भी जंगलों की ओर रुख करेंगे जैसे परम प्रतापी राजा भगवान राम ने किया था और सम्भूक की गर्दन धड से अलग कर दी थी, अभी न जाने कितने सम्भूक तारे जायेंगे, मारे जायेंगे. सब दंतेवाडा के जंगलों में अधर्म के पक्ष में लड़ते हुए तारे जाने, मारे जाने के लिए तैयारी कर रहे हैं.

प्राणियों में सद्भावना फैलाई थी तुमने इराक में, जब अहमदियों की नस्ल खत्म करने पर उतारू था एक तानाशाह, प्राणियों में सद्भावना फ़ैलाने के लिए ही होते रहे हैं गुजरात, मालेगाँव, मुजफ्फरनगर, असाम, मुंबई और भागलपुर के दंगे. सद्भावना के नाम पर ही तो अमेरिका पी रहा है खाड़ी देशों का सारा पेट्रोल और सद्भावना के नाम पर ही सलवा जुडूम ने जन्म लिया है. तुम्हारी सद्भावना से ही प्ररित हो कर गिरजाघरों, मंदिरों और मदरसों में कई मौलवियों, बाबाओं और पादरियों ने हवस के महाकाव्य लिखे हैं. जब तुम सद्भावना की बात करते हो तो मुझे दर्द से चीखती हुई वो माँ दिखती है जिसकी कोख से नवजात बच्चे को निकाल कर तलवार के नेजे पर रखा गया था. मुझे रूप कंवार दिखती है जो तुम्हारी सद्भावना से प्रेरित हो कर खुद को आग लगा लेती है, और हमें उसे सती कहने के लिए कहा जाता है. जब तुम सद्भावना की बात करते हो तो मेरे भीतर बहुत कुछ ठहर जाता है और बहुत कुछ प्रकाश की रफ़्तार से घूमने लगता है और मैं खुद कभी ठहरता हूँ, कभी घूमता हूँ. मुझे कुछ नहीं सुनाई देता सिवाय रोने, चीखने की आवाजों और सद्भावना के अनवरत उच्चारण के. मैं बहुत लाचार और ठगा हुआ महसूस करता हूँ जब तुम सद्भावना शब्द बोलते हो. अलग अलग भाषा में, कभी अरबी में, कभी अंग्रेजी में तो कभी संस्कृत में. पर हर बार उसका असर एक सा ही होता है.

विश्व का कल्याण करने के लिए ही निकले थे, कुछ व्यापारी मिसनरी समुद्री यात्रा पर और दुनिया को गुलाम बना लिया था. इंसानी आजादी उनके लिए एक बेमतलब का शब्द था क्योंकि विश्व का कल्याण करने का ठेका उनके पास था. अफ्रीका के नीग्रों लोगों को इसलिए बैलों सा जोता जाता था क्योंकि विश्व के कल्याण के लिए उसकी दरकार थी. विश्व का कल्याण करने के लिए ही तो पूंजीपति डाल रहें हैं डांके, जल, जंगल, जमीन और जीवन पर. विश्व के कल्याण का मंत्र जपते हुए ही तो हुए थे प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध, और हिरोशिमा, नागासाकी के लोग भी तो भाप बनाकर उड़ा दिए गए थे, विश्व के कल्याण के नाम पर ही. विश्व के कल्याण के नाम पर ही तो यह समीकरण बनाया गया है कि विश्व की सकल सम्पदा मुट्ठी भर लोगों के हाँथ में रहे और बाकी आबादी भूख के भजन गाए.

सुनो तुम रहने दो धर्म की जय का जिम्मा लेने को, तुम अधर्म के नाश की चिंता छोड़ दो.हमारे भीतर की सद्भावना को हमें जीने दो, रचने दो, गढ़ने दो, लिखने दो, कहने दो, उसे अनवरत अविरल बहने दो. तुम उसका आवाहन मत करो, उसके लिए रास्ता मत बनाओ. हमें हमारे कल्याण को खुद ही परिभाषित करना है. हम जनता हैं और जनता जानती है कि उसका कल्याण किसमे है. तुम्हारी सदिच्छा की राजनीति हम समझते हैं. इसलिए हम तुम्हारे धर्म, अधर्म, सद्भावना और कल्याण के माया जाल के खिलाफ अपना विद्रोह दर्ज कराते हैं, और तुम्हारी परिभाषाओं और समझ से अपना नाम ख़ारिज करते हैं.

तुम्हारा-अनंत 

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