Sunday, January 12, 2014

जबरदस्ती और जब्ती ज़ारी है..!!

जैसे जमीन हथिया ली जाती है वैसे ही आज महापुरुष और उनकी विरासत हथियाई जा रही है. जमीन या कोई भी चीज हथियाने वाल कौन होता है? जमींदार, सामंती, ताकतवर, अत्याचारी और दबंग. ये लोग कभी डंडे के जोर पर कभी बंदूक की नाल पर, जर-जमीन हथियाते रहे हैं. सत्ता के शिखर पर बैठे ये लोग, कमजोरों और मजलूमों की लाशो के अम्बार पर बैठे हुए लोग हैं. इनकी खुशियाँ न जाने कितने आंसूं पर हँसती हैं. इनका सुकून न जाने कितनों के दर्द पर पसरा हुआ है. मन तो करता है कि ऐसे ही लिखता रहूँ, पर ये लेख फिर उपमाओं की नदी हो जायेगा. जिसमे कुंठा और क्रोध बहता हुआ दिखेगा. कुंठा और क्रोध मनुष्य की शक्ति और सामर्थ्य का पतन कर देता है. ऐसा पिता जी कहा करते हैं. अभी-अभी याद आया सो लिख दिया.

खैर मैं क्रोध और कुंठा में नहीं हूँ पर ये देख कर हैरान हूँ कि कैसे ये सामंती, जमींदार, अत्याचारी और दबंग लोग राजनीति में भी महापुरषों और उनके संघर्ष की विरासत को हथिया रहे है. इस बार इनके हाँथ में बन्दूक नहीं है. लाठी डंडे नहीं है. इनके मुंह में नारे हैं, चेहरे पर अजीब रहस्यमयी भाव हैं. मानवता और करुणा की लच्छेदार बातें हैं और उन बातों के पीछे बहुत सारी साजिशें. ये विवेकानंद से लेकर भगत सिंह तक सब को हथिया लेना चाहते हैं. उनका सारा किया-कराया, कहा-सुना, खा पचा जाना चाहते हैं. देशप्रेम और राष्ट्र विकास के नाम पर, भारत माता की जय बोलते हुए ये लोग सिद्ध कर देना चाहते हैं कि भगत सिंह, दयानन्द सरस्वती, विवेकानंद, सरदार पटेल जैसे अनेक लोग इन्ही में से एक थे. जबकि मैं जानता हूँ कि ये लोग कुछ भी हों पर इन जैसे तो नहीं थे.  

ये रूढ़ीवादी राजनीती सामंत भारत माता की जय बोल कर विकेकानंद को हथिया रहे हैं और उनके जन्म दिवस पर उनकी तस्वीर के सामने गाना गा रहे हैं कि ''जागो हिंदू देश तुम्हे पुकार रहा है, इसे फिर से विश्व गुरु बनाना है,, मैं पूछता हूँ कि सिर्फ हिंदू ही क्यों जगे, और क्या सिर्फ हिंदू ही इस देश को विश्व गुरु बना सकता है. या फिर यह कहने का प्रयाश है कि भारत माता के लाल सिर्फ हिंदू है और जो कोई भी इन देशभक्त हिंदुओं के साथ हाँ में हाँ मिलाएगा, वही देश का लाल है. जो साथ है, देश भक्त है और जो साथ नहीं, वो देश द्रोही. ये कौन सी बात हुई भाई ?

तुम ही देश बनाओ और तुम ही देश भक्त. देश भक्ति के गीत भी तुम ही रचो और देश भक्ति की परिभाषा भी. ये कैसा देश है तुम्हारा ? जहाँ मूल देश कहीं दीखता ही नहीं. न दलित दीखते हैं, न मुसलमान दीखते हैं, न ही धार्मिक अल्पसंख्यक हैं, न नास्तिक हैं और न महिलाएं. महिलाएं हैं भी तुम्हारे देश में तो देवी की तरह, शक्ति और माँ की तरह. भारत माँ का प्रशस्ति गान करने वाले लोगों तुमने रूप कँवर को माँ कह कर ही जला दिया था. तुमने देवी, जीवन आधार, माता जैसी उपमाएं दे कर ही देश की आधी आबादी को अब तक कैद रखा, अबतक शोषण करते रहे,  माफ करना ए देश भक्तों !तुम्हारा देश बहुत छोटा है, मेरा दम घुटता है इसमें. 

मैं तुम्हारे विवेकानंद को नहीं जनता, जो हिंदुओं के जागने और भारत को विश्वगुरु बनाने की बात करता था. हिंदू धर्म को सभी धर्मों से बड़ा कहता था और हिंदू धर्म की यश पताका पूरे विश्व में फहराने का उपदेश देता था. मैं उस विवेकानंद को जनता हूँ. जो कहता था कि अगर देश का कोई भी गरीब भूखा है. तो हमारा धर्म बेकार है. वो कहता था ये देवता और धर्म किसी काम के नहीं यदि मानवता कष्ट में है. वो कहता था कि गरीबों के लिए संघर्ष करना और उनकी सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म होना चाहिए. उसने बताया था कि इश्वर तुम्हारे कर्म में निहित है और तुम्हारा कर्म गरीबों की सेवा करना है. वो जब कहता था कि तुम गीता पढ़ने के बजाय मन लगा फूटबाल खेलो, और इसतरह तुम इश्वर के समीप रहोगे. तो मुझे एक क्रन्तिकारी दीखता था. जो कर्म की निष्ठा पर पूर्ण विस्वास रखता है. जब वो वेद में भी रूढ़ी हो चुकी बातों को नकारते हुए, आलोचना करता था तो वो मुझे एक क्रांतिकारी दीखता था और उसके भगवे वस्त्र के भीतर "लाल चरित्र" साफ़ झलक रहा होता था. मैं उस विवेकानंद से प्रेम करता हूँ. उसे आपना साथी मानता हूँ. उससे प्रेरणा लेता हूँ. जब कभी संघर्ष करता हूँ वो भी मेरे साथ होता है. 

तुम भगवा हाँथ में लेकर भगत सिंह से लेकर विवेकानंद तक सब को हंतियाने चले हो मगर याद रखना. ये लोग, विचार है. जागीर और जमीन नहीं, जो हथिया लोगे. तुम्हारे जूते में इनके पाँव फिट नहीं होते, और अगर जबरदस्ती करके इन्हें फिट करने की कोशिश करोगे तो तुम्हरा जूता फटना बिलकुल तय है. अगर जूता और पांव प्यारे हैं तो ऐसी गलती मत करना कि फिर काँटों की राह पर नंगे पाँव ही चलना पड़े. बाकी तुम समझदार हो. और समझदार को समझाने वाला बेवकूफ होता हैं इसलिए मैं तुम्हे समझाने से रहा. 

अनुराग अनंत 

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