Saturday, January 4, 2014

अरविन्द केजरीवाल और "आप" के लिए अनुराग अनंत का एक तीखापत्र


अरविन्द केजरीवाल और "आप" के लिए अनुराग अनंत का एक तीखापत्र

आम आदमी प्रिय 
अरविन्द केजरीवाल जी 


लोकतंत्र का नारा, आम आदमी नकारा है !! 

ये मैं नहीं कह रहा हूँ. मेरा मन कह रहा है. और रो-रो कर कह रहा है. क्योंकि जब आदर्श की राजनीति का दावा करते हुए "आप" व्यवहारिता के कीचड़ में धंसे जा रहे है. तब ये स्वर फूटना स्वाभाविक है.

माफ करना केजरीवाल साहब "आप" क्या है मैं नहीं जानता पर मुझे एक बात लगने लगी है की आप "आम आदमी" तो नहीं ही हैं. क्योंकि देश का आम आदमी इतना शातिर नहीं हो सकता. यहाँ का आम आदमी बड़ा भोला और भाउक है. इसे सोनिया अपनी माता, मोदी अपना नायक और केजरीवाल अपना कर्णधार लगता है. ये बहुत ही आशावादी जनता है. जो अपने झुके हुए कंधो पर एटलस की तरह मरे हुए लोकतंत्र का बोझ ढो रही है. नहीं तो जो स्थिति भारत में है वहाँ सत्ताएं उखड जाया करती हैं. तख़्त गिरा दिए जाते हैं और ताज उछाल दिए जाते हैं. शायद इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि जहाँ ऐसा होता है वहाँ व्यवस्था को संजीवनी पीला कर बचाने के लिए कोई केजरीवाल जैसा हनुमान नहीं होता होगा. जो जनता का व्यवस्था के प्रति पूरा गुस्सा बिजली और पानी तक समेट दे और फिर जनता के ही पैसे (सब्सीडी) से उसे सस्ता और मुफ्त कर दे. 



मुझे तो देखना है कि भाई केजरीवाल जिन्हें सत्ता के बहार रहते हुए तो पूरे सच और सुबूत दिख रहे थे. सारे नेता भ्रष्टाचारी, दलाल और देश के लिए खतरा लग रहे थे. शीला दीक्षित भ्रष्टाचार की दानव थी. अब सत्ता में जा कर वो क्या करते है. महगाई और गरीबी का पूरा अर्थशास्त्र समझा दिया था "आप" ने सड़कों पर लोगों को. बताया था की कैसे कम्पनियाँ सरकार के साथ मिलकर महगाई और टैरिफ बढाती है. बिजली के दाम और पेट्रोल का मूल्य तय करने में कैसे धांधली होती है. कौन लोग वर्तमान सरकार में इसमें संलिप्त हैं. सड़कों पर कहा था कि सत्ता में आते ही इन सभी भ्रष्ट नेताओं की जेल परेड करवाएंगे. मुझे तो अब उसी दिन का इंतज़ार है कि कब केजरीवाल अपने केजरीवाल होने को साबित करेंगे. जिस केजरीवाल को देश की जनता ने जिताया और प्यार किया है. वो विद्रोही, भोला, साधारण और भाउक केजरीवाल है न कि परदे के पीछे का निर्देशक जो जनता को दर्शक बनाने पर विस्वास रखता है और लोकतंत्र को एक नाटक की तरह खेलता है. 


"आप" ने कहा है कि जांच एजेंसियों से जांच करवाएँगे आडिट एजेंसियों से आडिट कराएँगे और फिर अगर घोटाला या अनियमितताएं मिलीं तो कड़े कदम उठाये जायेंगे. मैं इस बार बता दूं केजरीवाल साहब जांच चाहे जितनी भी करवा लीजिए पर साजा तो देनी ही होगी आपको उन भ्रष्ट नेताओं को, क्योंकि ये तो दुनिया जानती है कि कॉमन वेल्थ गेम में घोटाला हुआ. शीला दीक्षित भ्रष्ट नेता है और एमसीडी में भाजपा ने खूब मलाई काटी है. ये सारी बातें जब बाहर से आपको दिख रही थी और "आप" खुलासे पर खुलासे कर रहे थे तो जांच तो अब बस एक औपचारिकता होनी चाहिए. क्योंकि आम आदमी पार्टी के पास पहले से सुबूत भरे पड़े हैं जैसाकि "आप" कहते आये हैं. और हाँ अगर "आप" शासन में भी इन भ्रष्टाचारियों को क्लीन चिट मिल गई. जैसाकि अन्य सरकारों में होता आया है. तो ये बात साफ़ है कि चोरों के साथ "आप"ने भी रिश्ता बना लिया है मौसेरे भाई न सही तो ममेरे भाई का ही सही. और जन लोकपाल पर तो बात करना ही भूल गया. आपने कहा था कि दिल्ली की जनता को नए साल पर जन लोकपाल का तोहफा देंगे. तो जल्दी करिये साहब उस तोहफे के लिए हममें से कितने कब से आस लगाये बैठे है. सरकार का समीकरण बने या बिगड़े, सत्ता रहे या जाए. जन लोकपाल का तोहफा "आप" जल्द से जल्द दीजिए. जिसके चलते चूहा से ले कर शेर तक सब जेल में जा सकें और अपनी सारी अदाएं-कलाएं भूल जाएँ. आशा है 'आप" जल्द ही ऐसा कुछ करेंगे. 

एक और बात जो मुझे पूछनी है "आप"से कि जनता को "आप" एकदम बेवकूफ समझते है क्या ? या फिर ये बताएं कि "आप" की रीढ़ की हड्डी में कोई प्रोब्लम है ? आप ठीक से खड़े क्यों नहीं रह पाते केजरीवाल साहब ! बड़ा खतरनाक होता है बिना रीढ़ के आदमी को अपना नेता बनाना. मैं कभी कभी डरता हूँ इस बात से. जब आप गिरते है या फिसलते है तो अपनी रीढ़ की हड्डी को दोष न देकर जनता को इस रोग में शामिल कर लेते है. और कहते है कि जनता ने गिरने के लिए कहा था. या जनता ने सँभालने के लिए आदेश किया था. अत: मैं गिरुं या संभालूं इसमें मेरी कोई गलती नहीं है. इसकी जिम्मेदार जनता है. वाह भाई वाह ! बात बहुत गोल है पचेगी नहीं ज्यादा दिन. 

केजरीवाल साहब पांच कमरों का फ़्लैट आपने लिया था तो कुछ सोच कर लिया होगा. जनता के लिए फैसले जल्दी हो सकें. आप ज्यादा काम कर सकें जैसे कई कारण हो सकते है. पर जैसे ही विपक्ष हमलावर हुआ आपने अपने जेब से जनता का बहाना निकाल लिया और मीडिया में कहा कि मेरे दोस्तों और समर्थकों ने मुझे फोन और मेल/मैसेज करके कहा है कि मुझे पांच कमरों के फ़्लैट में नहीं रहना चाहिए इसलिए मैं सरकार से कहता हूँ कि मुझे एक अपेक्षाकृत छोटा आवास दिया जाए. आपने कहा सरकारी गाडी नहीं लेंगे फिर कहते हैं जनता का काम करने के लिए सरकारी गाडी लेंगे पर लाल बत्ती नहीं लगाएंगे. ऐसे ही कई और उधाहरण है साहब जहाँ आपकी मीडियाबाजी और रीढ़ की हड्डी का रोग साफ़ दीखता है. बंगाल की मुख्यमंत्री प्लाईबुड के मकान में रहती है. त्रिपुरा का मुख्मंत्री टीन के मकान में रहता है. ममता निजी गाडी से जनता के बीच काम करती है बिना कोई खास सुरक्षा के तामझाम के. यही हाल मानिक सरकार का भी है. पर उन्होंने इतना आम आदमी वाला राग नहीं आलाप जितना "आप" आलाप रहे है. "आप" काम करें व्यवस्था परिवर्तन का जो वादा आपने किया था थोडा निभाइए. आम आदमी की रट कम लगाइए. 

जिसे इतिहास नहीं मालूम या जो राजनीति में नयी नयी रूचि ले रहा है उसे "आप" चमत्कारी लग सकतें हैं. पर जो आपको इतिहास की कसौटी पर कसेगा उसे "आप' चमत्कारी नेता नहीं दिखेंगे. क्योंकि जब मुलायम और नीतिश ने जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन के गर्भ से जन्म लिया था तो वो भी आप के जैसे जनता के नेता थे. उन्होंने भी किसानों और मेहनतकश जनता को बहुत सब्सीडी दी, उपहार दिए, सस्ती-मुफ्ती शिक्षा-दवाई दी. पर आखरी में सब वही ढाक के तीन पात ही रहा. पार्टियों की भीड़ में एक और पार्टी बढ़ गई. कुछ अन्य दलों के समर्थक इन पार्टियों ने तोड़े और किसी को घटा और किसी को फायदा पहुंचाती हुई अपनी परणिति को प्राप्त हैं. मैं "आप" के साथ ऐसा होते नहीं देखना चाहता. इसिलिए आपको ये पत्र लिख रहा हूँ. "आप" जो समझौते कर रहे है अगर वो गैर समझौतावाद पर आधारित है जैसा होना थोडा मुश्किल है पर मान ही लेते है कि ऐसा है. तो आप समझौते की चिंता मत करिये अपने व्यवस्था परिवर्तन का लक्ष्य पूर्ण करिये. और व्यावहारिकता की राजनीति से दूर रहिये. नहीं तो केजरीवाल को मुलायम और नीतिश होते देर नहीं लगेगी. 

क्या "आप" वही केजरीवाल हैं जिसने अपने चार कमरों के फ़्लैट में रहते हुए इतना बड़ा आंदोलन चलाया. वाही केजरीवाल आज सरकार चालने के लिए डुप्लेक्स फ़्लैट क्यों ले रहा है. जो शपत लेने के लिए मेट्रो में जा सकता है वो आफिस जाने के लिए सरकारी गाडी क्यों लेने को तैयार है. जिसने मंत्रिओं और विधायकों को सरकारी मकान और गाडी के लिए पार्टी संविधान में लिखित निषेद किया है. वो अब विचार करने की बात क्यों कह रहा है. केजरीवाल साहब ये सारे संकेत है पतन के. समझौतावादी राजनीति में फंसने और व्यावहारिकता की राजनीति में धंसने के. मैं "आप" के साथ ऐसा होते देख सकता हूँ पर आम आदमी के साथ ऐसा होते नहीं देख सकता क्योंकि आज "आप" आम आदमी के प्रतीक है. उसकी राजनीति का चिन्ह बन कर उभरे है आप, "आप"का पतन आम आदमी के संघर्ष और उसके जज्बे पर चोट होगी. मुझे "आप" से बड़ी आशा है और मेरा ये पत्र मेरा विरोध नहीं है ये मेरी तरफ से "आप" की स्वस्थ और सकारात्मक आलोचना है. 

"आप"का आम आदमी नहीं 
अनुराग अनन्त
यह लेख जनज्वार, नया इण्डिया और खबरकोश.कॉम पर भी प्रकाशित है 

जनज्वार.कॉम लिंक 
http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4671-agale-neetish-mulayam-to-nahi-kejrival-for-janjwar-by-anurag-anant

नया इण्डिया.कॉम लिंक 
http://www.nayaindia.com/news/latest-news/open-page/next-nitish-kejriwal-not-so-soft-239523.html

खबरकोश.कॉम लिंक 
http://www.khabarkosh.com/?p=3823



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