Thursday, November 24, 2011

.यहाँ भी वाल स्ट्रीट का कांसेप्ट फिट होता है.................

संसार में जितने भी शब्द हैं उनकी अपने अर्थों के साथ अपनी एक तस्वीर भी होती है जो की सुनने वाले के ज्ञान ,अनुभव और पूर्वाग्रह पर निर्भर करती  है .उदहारण के लिए यदि मैं हिल स्टेशन पर रहने वाले व्यक्ति से ''सुबह'' कहूँगा तो उसके दिमाग में जो तस्वीर बनेगी वो मैदानी क्षेत्र में रहने वाले व्यक्ति से अलग होगी चूंकि सुबह को लेकर दोनों के अनुभव अलग अलग है ,
शब्द समय के साथ-साथ अपनी शक्ल भी बदलते रहते हैं जैसे अगर मैं सेवेनटीज़ के यूथ की बात करूंगा तो आपके मन में कान ढके लम्बे बाल ,बेलबाटम का चौड़ा पैंट ,बड़े कॉलर की शर्ट पहने  चहरे पर सिस्टम के खिलाफ असंतोष का भाव लिए हुए अमिताभ से मिलता जुलता कोई लड़का दिखेगा ,वहीँ यूथ लड़की की तस्वीर हेमा मालिनी से मिलती हुई साडी में लिपटी ,शर्मीली पर  पर्याप्त मुखर, अपने अस्तित्व के लिए जूझती,समाज की रूढ़ियों के खिलाफ मौन और शांति पूर्ण विरोध दर्ज कराती टिपिकल इंडियन वुमेन दिखेगी ,कुछ ऐसी ही कमोबेस तस्वीर लेट नाइनटीज़ बनी रहती है ,पर जैसे ही हम इकिसवीं सदी में कदम रखते हैं शब्दों की तस्वीर बड़ी तेजी से बदलनी शुरू हो जाती है ,आज की तारिख में मैं अगर आज के यूथ की बात करूँ. तो यदि आपने रॉकस्टार देख ली है तो आपके जहन में रणबीर कपूर और नर्गिश की तस्वीर कौंध जाएगी .एक ऐसे युवा की तस्वीर जिसके चेहरे पर अजीब बदहवासी भरा जूनून साफ़  देखा जा सकता है ,वो अपने मन  का करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ,मेरा अपना मानना  है की इन सब के बीच अगर कोई शब्द बड़ी तेजी से अपनी शक्ल बदल रहा है तो वो है.......... '' इंडियन गर्ल ''
अभी कुछ दिन पहले मैंने अखबार में एक हेडिंग पढ़ी ''लडकियां गढ़ रही अपनी किडनैपिंग की फर्जी कहानियाँ ''खबर डिटेल में पढ़ी तो पता चला की इंडियन गर्ल्स की तस्वीर में ये भी रंग जुड़ने लगे हैं. अलीगंज में रहने वाली एक लड़की अपने बॉयफ्रेंड के साथ देर रात तक घूमती रही और घर वापस आ कर परिजनों से अपनी  किडनैपिंग की फर्जी कहानी गढ़ डाली ,दूसरी कहानी गाजीपुर लखनऊ कोचिंग करने आई एक दूसरी लड़की की है जिसने अपने किडनैपिंग और रेप की झूंठी  कहानी बनाई थी ऐसी ही कुछ मिलती जुलती कहानी ट्रांसगोमती नगर में भी घटी थी ,पुलिस ने जब इन केसों की छानबीन की तो जो सच्चाई सामने आई वो अपने आप में बहुत बड़े सवाल खड़े करती है .......एक अहम सवाल  ये की आखिर लड़कियां ऐसा क्यों कर रही हैं ?
मैंने इस सवाल को समझने के लिए फेसबुक पर कई सारी लड़कियों से चैट की....एक ही सवाल एक ही समय में सबसे पूछे और यकीन मानिए सभी के जवाब मिलते जुलते थे ,मेरा पहला प्रश्न था कि ''तुम अपनी मम्मी से किस तरह अलग हो ''जवाब में सबने कहा कि ''थिंकिंग और ड्रेससिंग सेन्स'' से .'थिंकिंग और ड्रेससिंग सेन्स' को उन्होंने जो डिफाइन किया उसका निचोड़ था कि हमें आज अपनी चोइस   खुद करनी है मम्मी कि तरह पति को परमेश्वर हम नहीं मान सकते,पति-पत्नी का सम्बन्ध दोस्ती कि तरह अच्छा  लगता है ,हमें अपनी प्रिओरीटीज़ खुद तय  करने का मौका चाहिए समाज,संस्कार, और सिस्टम के नाम पर कोई भी हमारे राईट को एक्सप्लोइट नहीं कर सकता.......मैंने जब  उनसे ऊपर कि घटनाओं के बारे में डिसकस किया तो सभी का जवाब एक था ऐसा करना गलत है जो लडकियाँ ऐसा करतीं हैं वो सो काल्ड मार्डन हैं माँ बाप कि ट्रस्ट भी कोई चीज़ होती है  ,ये वो लडकियां है जो फिल्मों की रील लाइफ को रियल लाइफ में जीना चाहती  है ,
अब मुझे  मेरा जवाब मिल गया था ये सच है कि आज इंडियन गर्ल वो सब कुछ करना चाहती है जो कभी समाज उसे लड़की होने की वजह से नहीं करने देना चाहता था ,पर उसे अपनी लिमिटेशन का पता है, और जिन लड़कियों से ऐसी गलती हुई है उस गलती में वो अकेले जिमेदार नहीं है बल्कि इसके लिए पूरा सिस्टम जिम्मेदार है,वो पारिवारिक परिवेश जो लड़कियों में कुंठा भरता है और  वो इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री जो इस कुंठा  को बाज़ार तक ले आती है और उसमे मुनाफे की सम्भावना तलाशती है ,आज टी.वी. पर डेट ट्रैप ,स्प्लिट विला ,रोड़ीस ,इमोशनल अत्याचार जैसे न जाने कितने ऐसे प्रोग्राम हैं ,जो भारतीय युवा की इसी  कुंठा का व्यापार कर रहे हैं ,इन प्रोगाम्स में दिखाई देने वाला युवा क्या सच भारतीय समाज के युवा की तस्वीर गढ़ता है , आज इन प्रोग्राम्स ने न सिर्फ उनकी चाल-ढाल बदली है .बल्कि उनकी जीवन शैली और भाषा को भी बदल दिया है ,आज से पांच साल पहले किसी गर्ल को हॉट कहना गलत माना जाता था पर आज ये कॉम्प्लीमेंट माना जा रहा है.ये बदलाव सही है या गलत ये दूसरी बात है पर अहम बात है की क्या ये बदलाव उस पूरे भारत का है १२५ करोर जनसँख्या वाला देश है ,आज भी इस देश में युवा अपने मन की करने से पहले अपने परिवार माँ- बाप, भाई, बहन, दोस्तों की सोचता है और फिर सबका ख्याल रखता हुआ अपने सपनो की उड़ान उड़ता है ,पर इनमे से कुछ ऐसे भी है जो रील लाइफ को रियल लाइफ समझने की भूल कर बैठते है और गलतियां कर बैठते है ......यहाँ भी वाल स्ट्रीट का कांसेप्ट फिट होता है ''एक परसेंट यूथ 99 % यूथ को डाइरेक्ट कर रहा है ''  इंडियन यूथ आज भी अपने संस्कारों से जुड़ाव मसूस करता है न की जकडन...........

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