Sunday, November 13, 2011

बिना लाइसेंस के सपने.........................

हताशा में आशा तलाशो ....................................


''21वीं शताब्दी आवाजों और बातों की सदी है '' मेरे शब्दकोश में 21वीं शताब्दी की बहुत सारी परिभाषाओं में से ये भी एक परिभाषा है ,भागती हुई जिन्दगी के बैकग्राउंड में सुबह से शाम तक न जाने कितनी आवाज़े बजती रहती हैं,बातें गूंजती रहती हैं ,लेकिन इनमे से कुछ  ऐसी भी होती हैं जो न सिर्फ बदहवास दौड़ते क़दमों को रोक देतीं  है बल्कि इंसान के दिलो-दिमाग़ पर छा जाती हैं,
कल मार्निंगवॉक के समय मैंने भी ऐसी ही आवाजें और बातें सुनी जिसे  मैं आप के साथ शेयर करना चाहता हूँ ,पहली आवाज़ मुझे 18 -19 वर्ष के नवजवान की सुनाई दी,वो आपने दोस्त से  किसी सपने को पूरा करने की बात कर रहा था कि तभी उसके  दोस्त ने सेवेनटीज़ के रिबेलियन हीरो की तरह जवाब दिया ''सपने देखने का लाइसेंस है तेरे पास '' जो सपने देखने लगा ,सपनों की तेज रफ़्तार सड़क पर अपनी जिन्दगी की गाड़ी वो चलाते हैं जिनके पास सपने देखने का लाइसेंस होता है'' ! उसका मतलब सुविधा ,साधन और धन से था ,पर  इसके जवाब में उसके दोस्त ने जो कहा वो कमाल ही था ,उसने कहा :- '' तमिलनाडु के छोटे से शहर रामेश्वरम में जैनुलाब्दीन नाम के एक अनपढ़ मल्लाह का बेटा अखबार बेंच  कर  बिना लाइसेंस  के सपने देखते हुए  देश का राष्ट्रपति ,मिसाइल मैन और भारतरत्न डॉ अब्दुल कलाम बन सकता है ,तो मैं क्यों नहीं ? उसका ये  डायलॉग सुन कर डॉ अब्दुल कलाम का स्टेटमेंट याद आ गया कि '' सपने वो नहीं होते जो सोते हुए देखे जाते हैं ,सपने वो होते है जो सोने नहीं देते '' मैं  ये सब कुछ सोचते, सुनते, महसूस, करते कुछ आगे बढ़ा ही था कि एक दूसरी आवाज़ सुनाई दी 8-9 साल का एक बच्चा जॉगिंग करते अपने पापा से KBC के अमिताभ बच्चन स्टाइल में पूछ रहा था कि पापा एप्पल  के फाउंडर  स्टीव जॉब्स ने मरते वक़्त क्या कहा था ? पापा तो मानो दौड़ते-दौड़ते अचानक हॉट शीट पर बैठ गए हों ,और चेहरा वैसा बन गया , जैसा सुशील कुमार का 5 करोर का प्रश्न सुन कर बना था ,खैर सवाल का जवाब तो मुझे भी नहीं मालूम था ,सो मैंने ही पूछ लिया बेटा आप ही बताओ कि स्टीव जॉब्स ने लास्ट वर्ड्स क्या बोले थे ? उसका जवाब था , उन्होंने मरते वक़्त तीन बार हँसते हुए वॉव ! वॉव ! वॉव ! कहा था मैं अभी हैरानी से उसे देख ही रहा था कि वो अपने पापा के साथ आगे बढ़ गया मैं कुछ देर वहीँ खड़ा रहा और स्टीव जॉब्स मेरे कानों में वॉव! वॉव ! वॉव ! कहते रहे , हमेशा की तरह मार्निंगवॉक के बाद घर आ गया पर इस बार मैं अकेला नहीं आया था ,मेरे साथ मेरा पीछा करते हुए घर तक चली आई थी कुछ बातें और कुछ आवाजें ,,
मैंने उस लड़के की कही बात की जांच  करने के लिए इन्टरनेट पर चेक किया तो पाया 16 अक्टूबर को मेमोरिअल चर्च आफ स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में उनकी बहन मोना जॉब्स ने अपने इंटरव्यू में खुलासा किया था कि .''स्टीव जॉब्स के आखरीपलों होठों पर मुस्कान और मुंह पर वॉव !वॉव !वॉव ! था उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था कि मानों वो कोई ऊँची चढ़ाई चढ़ रहे हों ,''
स्टीव जॉब्स भी उन लोगों में से थे जो अपने रास्ते खुद बनाते हैं ,अमेरिका में एक अविवाहित छात्रा के सामाजिक रूप से अस्वीकार्य बालक ने पूरे समाज को नई दिशा दी ,उनकी माँ ने उन्हें जिन लोगों को  गोद दिया वो एक अनपढ़ दंपत्ति थे ,अपनी मन कि करने वाले स्टीव खुद कभी ग्रेजुएट नहीं हो पाए ,पर दुनिया को मैकिनटॉस जैसा गिफ्ट दे कर अपने सपने ''एप्पल'' को एक  पूरी दुनिया में फैला दिया ,उन्हें जब 30 की  उम्र  उनकी ही कम्पनी से निकला गया तब उन्होंने घोर हताशा में भी आशा की किरण खोज निकाली थी ,और कहा था ''एप्पल से निकला जाना मेरे लिए बहुत अच्छा है इससे मुझे सफलता के भार की जगह नई शुरुवात  के लिए हल्कापन मिला है '' उन्होंने उसके बाद नेक्स्ट और पिक्सर नाम की दो कम्पनी खोली .पिक्सर आज दुनिया सबसे बढ़िया एनीमेशन स्टूडियो है ,और यहीं पर पहली एनीमेशन फिल्म '' टॉय स्टोरी '' बनी थी ,स्टीव जॉब्स के मुँह  से मरते वक़्त वॉव !वॉव !वॉव ! इसलिए निकला होगा क्योंकि उन्होंने शायद मृत्यु में भी जन्म  की संभावनाओं को देख लिया था,
स्टीव जॉब्स हो या डॉ अब्दुल कलाम उन्हें सपने देखने के लिए किसी लाइसेंस  की जरूरत नहीं  पड़ी, और ख़ुशी कि बात ये हैं आज हमारे देश का बचपन और जवानी इस बात को अच्छी तरह समझ रही है ,एक ओर जहाँ जवानी डॉ कलाम कि तर्ज पर बिना लाइसेंस  के सपने देखने कि हिम्मत कर रही है वहीँ दूसरी ओर बचपन स्टीव जॉब्स की हताशा में आशा और निगेटिविटी में पोजिटिविटी देखने कि कला को बारीकी से सीख रहा है और उन्हें अन्तिम सांस तक फालो कर रहा है ,अब मुझे वो दिन दूर नहीं लगता कि जब माइक्रोसाफ्ट और एप्पल  जैसी कम्पनी हमारे  देश में होंगी ,मैंने जो बातें कहीं और जो आवाजें आपने सुनी दोनों बड़ी काम कि थी '' फिर मिलेंगे तब तक के लिए  ''स्टे हंगरी ,स्टे फूलिश ''.............
                                  तुम्हारा --अनंत 
16 nov 2011 को आई- नेक्स्ट  (दैनिक जागरण ) प्रकाशित लेख  

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