ढलती उम्र की पाबंदियाँ बढ़ते जूनून को नहीं रोक पाती ,अपने आप को साबित करने का ज़ज्बा वो उड़ान है जिसे पंखों की नहीं हौसलों की जरूरत पड़ती है,अभी हाल में जब १०० वर्षीय मैराथन धावक फौजा सिंह का नाम अखबारों की सुर्खियाँ बना तब राहत इन्दौरी का वो शेर मुझे याद आ गया
की..........
'' ये कैंचियाँ हमें उड़ने से खाख़ रोकेंगे,,
'' हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं ,,

सच में जिस उम्र में लोग बिमारियों की मार खा कर घरों में कैद हो जाते हैं उस उम्र में फौजा सिंह लन्दन की सड़कों में स्पोर्ट्स शूस पहने दौड़ते हुए नज़र आते है ,पंजाब के एक मामूली किसान परिवार में जन्मे फौजा सिंह पढ़े लिखे नहीं हैं और न ही उन्हें देश-दुनिया की ख़बर है ,पत्नी और बेटे की मौत के बाद वो अपने गाँव ब्यासपिंड को छोड़ कर अपने रिश्तेदारों के पास इल्फोर्ड लन्दन चले गए थे ,८९ वर्ष की उम्र में निपट अकेला एक बुजुर्ग भाषाई और सांस्कृतिक विभेद से जूझता ,पत्नी और बेटे का गम ढोता ,जब जिन्दगी के मायने तलाशने लन्दन की सड़कों पर दौड़ता है ,तब ये दौड़ उसके लिए सिर्फ दौड़ नहीं रह जाती ,वो उसकी जिन्दगी का मकसद बन जाती है , अपनी जिन्दगी के ११ साल उन्होंने दौड़ते हुए गुजार दिए , इस दौरान उन्होंने ५ मरथन लन्दन में ,२ मैराथन टोरंटो में .और १ मैराथन न्यूयार्क में दौड़ी है ,और इस बार टोरंटो में होने वाली वाटरफ्रंट मैराथन में ४२ km ,दौड़ पूरी करके गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में विश्व के सबसे बुजुर्ग मैराथन धावक के रूप में अपना नाम दर्ज करवाया है ,उनके इसी ज़ज्बे और जूनून को सलाम करते हुए ब्रिटेन के महरानी ने उन्हें प्राइड ऑफ़ यू.के. से नवाज़ा है ,
अगर फौजा सिंह के जीवन से दौड़ के ये ११ साल निकाल दिए जाएँ तो वो बस ८९ साल के एक अनपढ़ किसान के आलावा कुछ नहीं बचते , ये हौसले,जूनून और संकल्प के ११ साल ही थे जिन्होंने फौजा सिंह को विश्व प्रसिद्ध टर्बन टोरनेडो (पगड़ी वाला तूफ़ान ) बना डाला ,

फौजा सिंह ही अकेले ऐसे नहीं हैं जिन्होंने उम्र की कैंचियों को चुनौती देते हुए ताकत और सामर्थ के पर कट जाने के बाद भी हौसलों से सपनों और जूनून की उड़ान उड़ी है ,विश्व के सबसे बुजुर्ग डॉ. अमेरिका के, डॉ. वाल्टर वाटसन की उम्र भी १०० वर्ष है पर वो आज भी जवानों की तरह मरीजों की सेवा करते हैं,९७ वर्ष की ज्योर्ज मोयसे दुनिया के सबसे खतरनाक और रोमांचकारी खेलों में से एक खेल स्काई ड्राइविंग की सबसे बुजुर्ग खिलाड़ी हैं पर खेल ऐसा खेलती हैं की जवानों को भी शर्म आ जाये, अभी उन्होंने हाल में ही १००० फुट की ऊंचाई से छलांग लगाईं है ,डोरोथी डे ला ९९ वर्ष की है और चीन में होहोत में जून २०१० में आयोजित बुजुर्गों की टेबल टेनिस प्रतियोगिता में भाग लेने वाली सबसे अधिक उम्र की खिलाड़ी थी ,इस उम्र में भी उनकी फूर्ती और खेल देखने लायक था ,असम के भोलाराम दास न्यायधीश पद से रिटायर्ड हुए है, उनका सपना था की वो phd करें ,उन्होंने भी उम्र को धता बताते हुए १०० की उम्र में गुवाहाटी विश्वविद्यालय में phd के लिए दाखिला लिया है वो विश्व के सबसे बुजुर्ग शोध छात्र हैं, ७५ वर्ष के बिरजू महराज आज भी उतनी ही उर्जा और निपुणता के साथ नृत्य करते है जैसा वो युवा काल में करते थे ,शमसाद बेगम आज ९३ वर्ष की उम्र में भी गए बिना नहीं रह पाती है और किसी जमाने में पूरे हिन्दुस्तान को नचा देने वाली ये आवाज़ आज भी कम सुरीली नहीं है ,दिल्ली मेट्रो रेल कोर्पोरेशन के cmd ईं० श्रीधरन आज ८० साल की उम्र में भी पूरी तरह सक्रिय है उन्होंने दिल्ली मेट्रो का जाल बनाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है,८४ साल की उम्र में ७६०० km यात्रा शुरू करके लाल कृष्ण अडवानी ने भी सबको चौका दिया है ,अन्ना ने ७४ वर्ष की ढलती उम्र में जवानों को राह दिखाई और सामाजिक क्रांति का सूत्रपात कर डाला ,पूरी दुनिया में फौजा सिंह से ले कर अन्ना तक कई ऐसे उदहारण फैले पड़े हैं,जिन्होंने उम्र के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि पूरे हौसले और जूनून से अपने सपनों के पूरा करने के लिए ,अपने मकसद को पाने के लिए ,अपने आपको साबित करने के लिए लड़े, और ढलती उम्र में जीवन के चरमोत्कर्ष को प्राप्त किया ये उन लोगों की जीवन के प्रति घोर आस्था और जिजीवषा का प्रतीक है ,फौजा सिंह समेत जूनून से भरपूर जीवन जीने वाला हर एक बुजुर्ग का जीवन हम युवाओं को प्रेरणा दे रहा है और मानो हमसे कह रहा है की बेटा! अगर हम इस उम्र में ये कर सकते है तो तुम अपनी उम्र में ...........................अब परों से नहीं हौसलों से उड़ने की बारी है
तुम्हारा--अनंत
No comments:
Post a Comment