Sunday, March 30, 2014

निरर्थकता से सार्थकता की ओर..!!

कभी कभी यूं ही सोचने लगता हूँ और बहुत सोचने के बाद भी कुछ नहीं सोच पाता. सब कुछ वैसा का वैसा ही रहता है जैसे पहले था. बिना कुछ बदले खड़ा रहता है समय, किसी पेड़ की तरह. कोई रेल भी तो नहीं आती कि मैं रेलगाड़ी में बैठ कर निकल जाऊं और समय का पेड़ पीछे छूट जाये. रेल में अमीर लोग बैठते हैं. हमारे पास तो टिकट के भी पैसे नहीं है, रेल हमारे लिए अभी सपना है और इसलिए हम अभिशप्त है. उसी ठहरे हुए समय के पेड़ से बंध कर पिटने के लिए, तब तक जबतक समय हमें खुद से रिहा न कर दे. 

कभी कभी ऐसे ही बातें करने का मन करता है. जिनका कोई अर्थ नहीं होता. मैं मानता हूँ कि हर चीज का कोई अर्थ हो ये जरूरी तो नहीं. कई बार चीजें अर्थों की भीढ़ में अपना असली अर्थ खो देतीं हैं. निरर्थक, अर्थ की तलाश में फिरते हुए ही लोग सिद्धार्थ से बुद्ध हो गए, मोहनदास से महात्मा गाँधी और राहुल सांकृत्यायन से महापंडित राहुल सांकृत्यायन. निरर्थकता में सार्थकता और इस सार्थकता में जीवन का अर्थ तलाशना ही तो जीवन जीना कहलाता है. हमसे पहले लोगों ने जो अर्थ तलाशा या गढा अगर हम उसे अपने जीवन का अर्थ मान लेंगे तो हमारे जीवन जीने का क्या मतलब रह जायेगा, क्या हम यहाँ खाने, पीने, सोने और बच्चे जनने के लिए ही आये हैं. जीवन का अर्थ क्या बस अपने पीछे खुद की कमाई कुछ दौलत, इमारतें और औलादें छोड़ जाना ही है. यही अर्थ है जीवन का, जिसे दुनिया सार्थकता की कसौटी पर कसा हुआ अर्थ मानती है. अगर ऐसा है तो मुझे इस अर्थ में निरर्थकता दिखती है और मेरी निरर्थक खोज में ही मेरा सार्थक अर्थ निहित है. 

मैं जनता हूँ. हर जगह अर्थ तलाशने वालों को मेरी इस निरर्थक बात का कोई अर्थ समझ नहीं आएगा. मैं ये भी जनता हूँ कि इस दुनिया में जितनी भी अर्थ वाली चीज है. उनकी शुरुवात निरर्थक खोजों से ही हुई थी और इसी निरर्थकता ने उसमे असीम अर्थ भर दिया. 

कल बीच रात को उठ कर मैं खुद से यही जिरह कर रहा था. ये कोई लेख नहीं है. बल्कि क्या है, मैं खुद नहीं जनता. कागज के एक पन्ने पर दिल ने जो कहा मैंने दर्ज कर लिया. अब इसकी शक्ल ये है आप इसे जो भी कहना चाहें, कह सकते हैं. मैंने जो कल खुद से बातें की थी आप से साझा कर रहा हूँ.

इस निरर्थकता में अर्थ की तलाश को बेचैन मन बिना अर्थ की बातें करते हुए अर्थ की तलाश करता है. मेरा मन भी आजकल उसी निरर्थक अर्थ की तलाश में जुटा हुआ है. जिसमे अपरिमित सार्थकता सी व्याप्त हो. जीवन जिस अर्थ को पाकर अर्थवान महसूस करे. दुनिया की नजर में फिर चाहे उस अर्थ का कोई अर्थ हो या न हो पर खुद को उस अर्थ में असीम अर्थ का बोध हो. यही तो चाहता हूँ मैं खुद से, खुद के जीवन, खुद के मन से...ए मन मुझे निरर्थकता से सार्थकता की ओर ले चल...

अनुराग अनंत  

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