Thursday, April 26, 2012

बचपन की यादों वाला वो कमरा....


हमारे आपके सबके घर मे एक स्टोर रूम होता है । एक बड़ा अंधेरा बंद कमरा जिसमे पुराने और बेकार समान बेतरतीब पड़े रहते हैं. ये कमरे या तो समान रखने के लिए खोले जाते हैं या तो कबाड़ निकाल कर बेचने के लिए, इसके अलावा इस कमरे से जो एक और इंपोर्टेंट काम लिया जाता है, वो है बच्चो को डराने का काम, मेरे मम्मी-पापा ने भी मुझे बचपन मे कबाड़ वाले कमरे के भूत से खूब डराया है, इस भूत के डर से स्कूल न जाने की जिद्द, दूध न पीने के नखरे, और देर रात तक जागने का रोमांच सब कुछ छोडना पड़ता था। कबाड़ वाले कमरे में भूत है, ये बात मेरे मन मे बड़े गहरे से बैठ गयी थी, शायद इसलिए बचपन में मैंने कभी उस कमरे को कभी खोलने की हिम्मत नहीं दिखाई. मैं उस वक़्त घर से कहीं और चला जाता था जब उस कमरे से कबाड़ बेचने के लिए निकाला जाता था, मैं जब घर आता तो मुझे कुछ चॉकलेट दी जाती और बताया जाता  कि भूत अंकल ने मुझसे खुश होकर दी है, और कहा है कि खूब मन लगा कर पढ़ाई करूँ, अच्छे-अच्छे काम करूँ, शैतानी और जिद्द न करूँ और न जाने ऐसे कितने आदेश या फरमाइशें भूत अंकल के नाम पर मेरे मम्मी-पापा मेरे सामने रख देते थे।


चॉकलेट खाते वक़्त अक्सर मुझे ऐसा लगता था कि भूत कोई जज होता है। जो हर घर के कबाड़ वाले कमरे मे रहता है, वो बच्चो के अच्छे बुरे कामों को देखता रहता है। अच्छा काम करने पर चॉकलेट देता है और बुरा काम करने पर बच्चे को खा जाता है। माँ मुझसे अक्सर कहा करती थी शरारत करोगे तो भूत अंकल तुम्हें खा जाएंगे।

मेरी ये सोच कहीं न कहीं मेरे मम्मी-पापा के लिए काफी मुफीद थी क्योंकि इससे उन्हे मेरे सवाल-जवाब और नखरों से छुटकारा मिल गया था। जब उनसे कोई बात नहीं संभलती तो वो उसी स्टोर रूम की ओर इशारा कर दिया करते थे और मैं शांत हो जाया करता था। उन्होने मेरे ऊपर एक प्रकार की अनजानी आभासी सत्ता स्थापित कर दी थी। जिसके बारे मे उन्हे खुद भी नहीं मालूम था। वो अनजाने  मे मेरी साइंटफिक अप्रोच को किल कर रहे थे।

ये कहानी सिर्फ मेरे बचपन की नहीं है बल्कि मेरा मानना है आप सबलोगों के बचपन मे भी ये घटी होंगी. हो सकता है, आपके बचपन मे फियरिंग कैरेक्टर झोलीवाले बाबा, अंधेरेवाली बुढ़िया, चमकीली आँखवाली बिल्ली, पीपलवाले बाबा और ऐसे ही नामों वाले कोई और भी हो सकते है, पर सबका काम वही होता था. जो कबाड़ वाले कमरे का भूत करता था।

मेरी मिमोरिज मे स्टोर रूम तबतक किसी डार्क रूम की तरह था, जबतक मैं उसे खोल कर उसके अंदर नहीं गया। पिछले दिनों जब होली मे उसकी सफाई करने के लिए मैं उसके भीतर गया तब मुझे लग रहा था कि अभी भूत सामने खड़ा हो जाएगा, मेरी आंखे उसे ढूंढ रही थी। लेकिन वो नहीं मिला, उसकी जगह मुझे ‘’सुल्तान’’ मिल गया, उसके मिलते ही मैं खुशी से नाच उठा और उसे उठा कर चूम लिया। ‘’सुल्तान’’ के बगल मे ‘’मुनमुन’’ पड़ी हुई थी मैंने उसे भी उठाया और उसपर जमी हुई धूल हटाई। सुल्तान साइकिल के टूटे हुए पहिये से बनाया गाया एक गाड़ीनुमा खिलौना था. जिसे बचपन में मैंने बनाया था और मुममुन मेरी छोटी बहन की बनाई हुई कपड़े की  गुड़िया थी। मैं दिन भर  सुल्तान के साथ खेलता रहता था और छोटी मुममुम के साथ। ये हमारे सबसे अच्छे दोस्त थे. जो हमारी सब बातें मानते थे। मुझे याद आ रहा था कैसे मैंने सुल्तान को वीडियो गेम खेलने के लिए गेम वाले के यहाँ इस शर्त के साथ रख दिया था कि जब पैसे दे दूँ तो मुझे दे देना, उसे लाने के लिए मैं पैसे चोरी करते हुए घर मे पकड़ा गया था और पापा ने ‘’समझवान लाल’’ से मेरी खूब पिटाई की थी. मैं रोते हुए भी बस ‘’सुल्तान-सुल्तान’’ कह रहा था. पापा ने सुल्तान के बारे मे पूछा और मेरे बताने पर शाम को उसे अपने साथ ले आए और मुझे गिफ्ट किया। मैं ये सब याद कर के हंस ही रहा था कि पापा की वो छड़ी ‘’समझवान लाल’’ भी दिख गई, मुझे लग रहा था कि मानो समय बीतने के साथ मेरा बचपन भी बीत कर इसी स्टोर  रूम मे छिपा जा रहा था और आज मैंने उसे ढूंढ लिया है । बाबा की आराम कुर्सी वहीं पड़ी थी, दादी की टूटी हुई खाट दीवार से सटी हुई खड़ी थी, मेरे और छोटी के पुराने खिलौने मानों मुझे देख कर पहचान गए हों और शरमा रहे हों, बचपन फिरसे जिंदा हो गया था।

काफी देर हो गयी थी. मम्मी बहार से आवाज़ लगा रहीं थीं शायद उन्हे पहली बार लगा होगा कि कबाड़ वाले कमरे मे कोई भूत रहता है और उसने मुझे खा लिया तभी वो तेज आवाज लगती हुई कमरे मे घुसीं मैंने उन्हे देख कर कहा मम्मी आप झूठ कहती थी. कबाड़ वाले कमरे मे भूत नहीं रहता, यहाँ बचपन रहता है.यादें रहती है. मम्मी ने भी पहली बार उस कमरे को मेरी निगाह से देखा,  और उन्होने भी मेरी कही हुई बात दोहरा दी और हम दोनों काफी देर तक कबाड़ वाले कमरे मे यादों के बीच रहे....बचपन के बीच रहे.

ये लेख दैनिक जागरण के (आई नेक्स्ट) में दिनांक 26-12-2013 को प्रकाशित हुआ है नीचे लिंक है 
http://inextepaper.jagran.com/203641/I-next-allahabad/26.12.13#page/11/2



अनुराग अनंत 

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