मेरे एक दोस्त ने कहा कि यार 21-12-12 को दुनिया ख़तम हो रही है. कितना डर लगता है न ये सोच कर... मैंने उसकी बात बीच में ही काट कर कहा, यार ये क्यों सोचता है कि हम 21-12-12 को सारे संसार के साथ मारे जाने वाले लोग हैं. तू ये क्यों नहीं सोचता कि हम वो है जिन्हें अपनी सदी का एक सबसे अहम दिन 12-12-12 देखने का मौका मिला. ये अजूबी तारीख जीने वाले हम बिरलों में सामिल हो गए है ये कहते हुए मेरे चेहरे में हंसी थी और उसके चेहरे में जा जाने कैसा खौफ,
मैंने अपने उस दोस्त की किसी भी बात को आज तक सीरियस नहीं लिया था पर पहली बार मैंने उसके जाने के बाद उसकी कही हुई बात को गंभीरता से लेने का प्रयास किया और सोचा कि मानों मेरे जीवन का ये आखिरी दिन है, मेरे साथ आप भी सोचिये कि ये जीवन का आखरी दिन है और अब आप भी बताइए कि एक दिन में वो कौन से काम है जो आप करना चाहेंगे,माथे पर पसीना आ रहा है और दिल की धडकन तेज हो गयी है न, मेरा भी यही हाल है, पर डरिए मत एक लंबी सांस खीचिये और कहिये की आप क्या करना चाहेंगे. खुदा या भगवान या जिसे भी आप सबसे ज्यादा मानते हों उसके लिए आप प्लीज ये मत कहिएगा कि मैं वैष्णो माँ का दर्शन करना चाहता हूँ, या फिर रात भर राम नाम भजन करना चाहती हूँ, या फिर गीता,कुरआन, बाइबल, या फिर ऐसा ही कोई सो कॉल्ड पुण्य का काम करना चाहूँगा या चाहूंगी.
आप इस दुनिया के पार उस ऊपर वाले को मुंह दिखने की फिकर में न डूब जाएँ और स्वर्ग-नर्क के चक्कर में डर कर राम, रहीम, मंदिर मस्जिद न पुकारने लग जाएँ. दिल पर हाँथ रखिये और एक गहरी सांस ले कर ये सोचिये कि ऐसा क्या था जो जीत की दौड़ में दौड़ते हुए हम जिंदगी को नहीं दे पाए, जिंदगी को जिंदगी बनाने की जुगत में जिंदगी को न जाने क्या बना दिया. मैंने अपनी जनता हूँ इसलिए मैं अपनी बात कह रहा हूँ आप अपनी जानते है सो अपनी बात कहिएगा.
मैं सबसे पहले अपने घर जाना चाहूँगा और उस लड़की से अपने दिल की बात कहना चाहूँगा जिसके घर के बहार उसकी एक झलक के इन्तजार में मैंने अपनी जवानी के चार साल गुजारे थे और उससे प्यार के ढाई अक्षर भी कभी नहीं कह पाया था. वजह थी डर, एक डर था कि कहीं उसके प्यार के चक्कर में कैरियर न तबाह हो जाये, दूसरा डर था यार ये इतने अमीर घर की लड़की है कहीं मुझे इनकार कर दिया तो मैं टूट जाऊंगा. तो हाँ से भी डर और न से भी डर,और इस डर में मैं उससे दूर चला आया पर वो मेरे साथ थी मुझमें बाकी थी, दूसरा काम मैं अपनी सारी मार्कशीट जला देना चाहूँगा क्योंकि इन्हें कमाते-कमाते मैंने अपने भीतर के कलाकार,कवि और इंसान को खतम खतम होते देखा था. समाज में कवियों कलाकारों और इंसानों(मानवता के लिए जीने वाले) की जो दशा और समाज में उनके प्रति जो नजरिया था उससे मैं डर गया था और अपने चारों तरफ मार्कशीट, डिग्रीयों और डिप्लोमा का एक बड़ा सा कवच बना लेना चाहता था जिसके भीतर मेरा इगो सेफ रह सके और मैं अपने घर वालों के सो-कॉल्ड ऑनर को बचा सकूँ.
तीसरा काम, मैं अपने बस्ती वाले दोस्तों रामू, कालू , मुन्ना, गूंजा और उनके जैसों की फ़ौज के साथ फिर से नाच गा कर पैसे मांगने वाला वही खेल खेलना चाहूँगा जिसे खेलते हुए मेरे पिताजी ने मुझे देख लिया था और बहुत मारा था. मैं बच्चे से जवान होने तक जब भी खेलना चाहता था, बस वही खेल मेरे जहन में आता था पर पिता जी और समाज के डर से नहीं खेल पाया. मेरे पिता जी और समाज उन बच्चों को आवारा और खराब कहते थे और मैं भी उनके डर से ऐसा ही कहने लगा था पर आज मैं उस डर के पार जा कर कहना चाहता हूँ कि वो रामू खराब नहीं था जो सड़कों में गाना गा कर पैसे लाता था और शाम को उसके घर का चूल्हा जलता था, वो गूंजा भी खराब नहीं थी जो उस उम्र में लोगों के घर का सारा काम करती थी जिस उम्र में मैं अपने जूते का फीता भी नहीं बाँध पाता था. वो मुन्ना भी खराब नहीं था जिसे पुलिस ने रेल में पानी का पाउच बेचते हुए पकड़ लिया था और इतना मारा था कि वो क्रिमिनल बन गया था. मैं उन सब के साथ जिंदगी के किताब के उन पन्नों को पढ़ना चाहूँगा जिसे उन्होंने अपनी मेहनत और संघर्ष की कलम से लिखा है.
इसके अलावा मैं फेसबुक के अपने उन सारे फ्रेंड को अनफ्रेंड कर बना चाहूँगा. जो वर्चुअल वर्ल्ड के वर्चुअल फ्रेंड है और जिन्हें मैंने जा जाने किस लालच और किस कुंठा के चलते अभी तक अपने साथ जोड़ रखा है.
और अंतिम में मैं कुछ देर ये बैठ कर सोचूंगा कि और वो कौन सा काम था जिसे मैं किसी न किसी डर के वजह से नहीं कर पाया या कर पा रहा रहा हूँ मैं उन सब कामों को करूँगा......और अब आप बताइए कि आप क्या करेंगे.
मैंने ये सब सोचते-सोचते ही एक ऐसी जिंदगी जी ली है जिसे मैं आज तक अपने 23 साल जीवन में किसी न किसी डर की वजह से नहीं जी पाया था, मैंने खुद को भी जान लिया है कि मैं डिग्रीयों और डिप्लोमायों से घिरा हुआ आदमी नहीं हूँ मैं मिटटी की सोंधी सुंगंध में सना और उसका दीवाना व्यक्ति हूँ. आप भी दुनिया खतम होने के डर के बहाने डर के पार जाने की कोशिश करिये सही कहता हूँ आपको वहाँ आपका सच्चा वजूद और आपकी सच्ची जिंदगी मिलेगी. क्योंकि डर के आगे जिंदगी है, डर के और आगे आप.
मेरा ये लेख आई- नेक्स्ट (दैनिक जागरण) में १२-१२-१२ को प्रकाशित हुआ था. लिंक नीचे दिया गया है.
http://inextepaper.jagran.com/74433/I-next-allahabad/12.12.12#page/11/1
तुम्हारा- अनंत
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