Monday, February 20, 2012

समय को जिसने न समझा ............


हैलो दोस्तों ! बड़े समय बाद वो समय फिर आ गया जब मैं और आप कुछ समय साथ गुजारेंगे तो चलिए क्यों न समय की मांग को सर आँखों पर रखते हुए कुछ समय,समय के लिए निकाला जाए वैसे भी कवि नीरज ने समय की इम्पार्टेंस के लिए कहा है कि ''समय को जिसने न समझा  उसे एक दिन मिटना पड़ा ,जो बचा तलवार से तो फूलों से कटना पड़ा...
वैसे ''समय'' वो वर्ड है जिसे यूथ को सबसे ज्यादा फेस करना पड़ता है, सोने का समय,पढ़ने का समय ,उठने का समय ,तुम्हारा समय,मेरा समय,क्लास का समय,मस्ती का समय,एक्जाम का समय,कम्पीटशन का समय,प्यार का समय,ब्रेक अप का समय,ख़ुशी का समय, गम का समय, कुछ कर दिखने का समय,न जाने कैसा-कैसा समय आता है यूथ की लाइफ में .यूथ है कि समय के नाम पर दौड़ा-दौड़ा भागा-भागा सा रहता है और समय का घोड़ा है की पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं लेता,पर एक समय ऐसा भी था जब हम टाइमलेस टाइम में जीते थे फिर बेबीलोन के लोगों ने ग्रहों की चाल और मौसम के बदलने को बेस बनाने हुए 360 दिन को एक साल बनाया जिसे उन्होंने 12 मून मंथ्स में डिवाइड कर दिया जिस हिसाब से हर महिना तीस दिन का होता था,इजिप्टीयन्स ने 5 दिन मौज मस्ती के जोड़ दिए,और साल ३६५ दिन का हो गया ,एलेवेनथ सेंचुरी में चीनी वैज्ञानिक सू सांग ने पहली मकैनिकल वाटर क्लॉक बनाई और कुछ इस तरह इंसान ने समय को बंधने कि कोशिश की या फिर कहें कि समय में बंधना शुरू किया,सिक्सटीन सेंतुरी में रोम के साइंटिस्ट गैलिलियो ने पेंडुलम की खोज की और कनक्लूजन निकाला कि समय पल्स में चलता है इसी थेवरी पर एटीन सेंतुरी में ह्यूजिन्स ने पहली पेंडुलम क्लॉक बनाई और हम समय को अपने साथ ले कर घूमने लगे,समय टिक-टॉक कर के चलने लगा,
 समय कभी किसी के लिए नहीं रुकता अब देखिये न साल 2012 लगा नहीं कि समय ने जनवरी के आधे से ज्यादा दिनों को कंधे में लाद कर इतिहास की काली कोठरी में फेंक दिया है ये समय सेकंड,मिनट,घंटा,दिन,महिना,और साल होते हुए लगातार रहता है, हम इससे कभी मुँह नहीं मोड़ सकते ये हमारी धडकनों में,हमारी नब्ज़ में बसा है ,हमारी गलती ये है कि हम समय को बहुत कम आंकते है पर जब समय हाँथ से निकल जाता है तब हाँथ मलने के अलावा कुछ बाकी नहीं रह जाता, एक सेकंड से धावक रेस हार जाता है,माइक्रो सेकंड को नजरंदाज़ करने पर एक पाइलट मौत के मुंह में समा सकता है,एक नैनो सेकंड की भी गलत गिनती किसी वैज्ञानिक कि सालों की  साधना पर पानी फेर सकती है, एक पीको सेकंड में परमाणु बम का ब्लास्ट होता है इसका मतलब है कि जिस सेकंड को हम बस यूं ही जाने देते है उसके लाखवें,करोरवें,हिस्से में भी दुनिया  की तस्वीर बदली जा सकती है,जीवित क्या मृत भी इस समय कि पकड़ से बाहर नहीं है ,अमेरिकन वैज्ञानिक विलियार्ड लिब्बी ने 1947  में खोजा कि पिछले 50  हज़ार वर्षों के दौरान जो कुछ जीवित रहा है उसमे एक टाइम कीपर मौजीद रहा है जो समय के साथ अपने आप एक निश्चित मात्रा में ख़तम होता रहता है जिसे कार्बन-14 कहते है इसी घडी से पता लगाया जा सकता है कि मिस्त्र के मम्मी कितने पुराने है,झारखंड से निकला कोयला कितने समय का है ,हम समय से नहीं भाग सकते इश्वर ने हमारे भीतर एक घडी लगा रखी है जो हमारे शरीर में सरकेडियन रिदम के रूप में पाई जाती है जिसका कंट्रोल माइंड के हैपोथैल्मस में होता है,इतना सब बोलने के बाद भी अगर आपमें से किसी के मन में ये प्रश्न बचा रह गया है कि समय क्या है ? तो यकीन मानिये मैं भी नोबल प्राइज़ विनर  साइंटिस्ट रिचर्ड फिन कि तरह बोलने वाला हूँ ''इसके बारे में सोचना बड़ा कठिन है और अभी मैं कुछ कठीन करने के मूड में नहीं हूँ'' फिलहाल तो इलेक्शन का समय है एनालिसिस का समय है , वोट का समय है चेंज का समय है ,जल्दी करिए वर्ना आप जानते है समय किसी के लिए नहीं रुकता है ,तलवार से बचाता है  तो फूलों से कटवा देता है .......भागिए मत समय के चैलेंजस को फेस करिए ....जीत पक्की है

ये लेख आई-नेक्स्ट(दैनिक जागरण) में  24-01-2011 को प्रकाशित है

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