गज़ब विरोधाभासी चरित्र है हमारा, और जो सत्ता में हैं वो इसे अच्छे से जानते हैं। शायद उन्होंने ही इसे गढ़ा है और संस्कृति के फ्रेम में मढ़ा है। विराट भारतीय परंपरा में निषेध शब्द नहीं है। भाषा, खान -पान, मत-विश्वास, रहन-सहन ले लेकर जीवन के हर मोर्चे पर एक बहुरंगी वितान भारतीय परंपरा का हिस्सा रहा है। पर इस उद्दात परंपरा के सामानांतर एक विरोधाभासी धारा हमेशा से बहती रही है। जो कभी कम और कभी ज्यादा प्रभावित करती है। भारतीय मानस इसी द्वय में फंस हुआ है। इसीलिए काल के हर खंड में, हर बिंदु पर विरोधाभासमें लिपटा हुआ, घिरा हुआ पाया जा सकता है।
ये इसी द्वय की द्वंदात्मक परंपरा है कि जिस काल खंड में सत्ताएं मनुस्मृति के हिसाब से चल रही थीं। कानों में शीशे ढाले जा रहे थे। पैरों में कीलें ठोकी जा रहीं थी। उसी समय सवर्ण मानसिकता को चुनौती देते हुए राजसत्ता के सीमाओं को लांग कर एक सवर्ण नवजवान सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध हो गया। उसने क्या क्या, कैसे कैसे बदल दिया। आप जानते हैं, मैं नहीं बताऊँगा। और वो कौन सी शक्तियां और सोच थी जिसने बुद्ध का बहिष्कार, विरोध किया। ये भी आप जानते हैं। इसी देश में जहाँ द्रोणाचार्य एक शूद्र का अंगूठा बिना पढ़ाये गुरु दक्षिणा में ले लेते हैं। वहीँ दूसरी तरफ चाणक्य भी हैं जो रास्ते के किनारे भेड़ चराते एक शूद्र के बच्चे को शिक्षा दे कर चक्रवर्ती सम्राट बना देते हैं। ब्राह्मणवाद के खिलाफ महान योद्धा भीम राव आंबेडकर में आंबेडकर नाम उनके एक ब्राह्मण गुरु का दिया हुआ है। यहाँ मंदिरों का निर्माण कराते, मंदिरों के चौखटों पर सर नवाते अकबर के कहानियां हैं तो मंदिर तोड़ते औरंज़ेब के किस्से भी हैं। ये विरोधाभासभारतीय इतिहास के हर मोड़ और वर्तमान के हर कदम पर विद्यमान है।
अभी वर्तमान में हमारे प्रदेश में एन्टीरोमियो दल बनाया गया है। कहा जा रहा है कि ये महिलाओं की सुरक्षा के लिए काम करेगा। पर असल में ये प्रेमी युगलों पर पहरा है। मिलने जुलने और प्रेम करने पर पाबन्दी है। अब देखिये कितना मजेदार विरोधाभासहै। हिंदी फिल्मों में जो परिवेश, संस्कृति, समाज दिखया जाता है वो मुख्य रूप से उत्तर-मध्य भारत का ही होता है। बॉलीवुड से दक्षिण-उत्तरवूर्व और पश्चिम लगभग नदारद ही रहता है। तो मतलब हिंदी फिल्मे इसी गईया-पट्टी, हिंदी-पट्टी की ही कहानी होती है। उसमे जब बागों में प्रेम दिखाया जाता है तो हमें अच्छा लगता है। लड़के मन ही मन हीरो और लड़कियां मन ही मन हीरोइन होती रहतीं है। जब प्रेम ज़माने के खिलाफ बगावत का ऐलान करता है तो हम साथ होते हैं। प्यार किया तो डरना क्या गाते हैं। जब प्रेमी-युगल फिल्म में परेशानी में फंसता है तो अपने अल्लाह-भगवान से दिल के किसी कोने में दुआ जैसा भी कुछ कर जाते हैं। इस तरह हम प्रेम और प्रेमियों के पक्ष में खड़े हुए लोग लगते हैं; पर एन्टीरोमियों दल हमारे प्रदेश में ही बनाया जाता है। और हम उसे सही कहते हैं। यहीं एक बादशाह के खिलाफ एक राजकुमार ने प्रेम के लिए बगावत कर दी थी और एक हम हैं। जो प्रेम परंपरा के विरुद्ध बहे जा रहें हैं। हमारे प्रदेश में ही प्रेम के प्रतीक श्री कृष्ण जी ने जन्म लिया। अच्छा हुआ आज-कल के दिनों में वो जवाँ नहीं हुए नहीं तो एंटी रोमियो वाले पकड़ लेते। फिर राधा के घर वालों को फोन जाता। पूरे बृज में बदनामी होती और श्री कृष्ण का काम तमाम हो जाता। हम उस प्रदेश में एन्टीरोमियो दल देख रहे हैं जहाँ राधा कृष्ण के रूप में प्रेमियों को पूजते हैं। ये हमारे वर्तमान में भारतीय विरोधाभासी परंपरा का उधाहरण हैं।
दूसरा उदाहरण गोरखनाथ मंदिर का ही ले लेते हैं। ये मंदिर कभी मुस्लिम योगियों और दलित-पिछड़े संतों का गढ़ रहा है। आपसी सद्भाव, सूफी संतत्व, जाति-प्रथा के नाश के आंदोलन का केंद्र रहा है। पर आज हम देख सकते हैं मंदिर किस प्रतीक के रूप में जाना जाता है। आज लोग मंदिर को मुस्लिम-विरोध का गढ़ मानने लगे हैं। राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते ऐसा कुछ समय से किया भी गया जो मंदिर के मूल चरित्र के साथ विरोधाभासी है।
ऐसे ही विरोधाभासके कई उदाहरण और भी दे सकता हूँ। जिसकी कोई जरूरत नहीं है। आप समझ गए होंगे, मैं क्या कहना चाहता हूँ। भारत बहुरंगी सांस्कृतिक धाराओं का विराट समुद्र है। जिसमे कुछ भी निषेध नहीं है। हमने विश्व को प्रेम से सम्भोग और सम्भोग से समाधी तक जाने का रास्ता दिखाया है। एंटी-रोमियों दल हमारी समृद्ध परंपरा और उसके विस्तार पर सवालिया निशान है। भारतीय परंपरा की द्वय विरोधाभासी धारा में आप किधर जाना चाहते हैं? अंगूठा काटने वालों की तरफ, कानों में शीश ढालने वालों की तरफ या फिर गरीब के बच्चे को सम्राट बना कर भारत का गौरव बढ़ाने वालों के साथ। आप प्रेमियों का पक्ष लेते हुए योगिराज कृष्णा के साथ खड़े होना चाहते हैं या एन्टीरोमियो दल की वकालत करते हुए योगी आदित्यनाथ के साथ खड़े होना चाहते हैं। अब फैसला आपको करना है इस विरोधाभासी समय में आप किस तरफ हैं
अनुराग अनंत
ये इसी द्वय की द्वंदात्मक परंपरा है कि जिस काल खंड में सत्ताएं मनुस्मृति के हिसाब से चल रही थीं। कानों में शीशे ढाले जा रहे थे। पैरों में कीलें ठोकी जा रहीं थी। उसी समय सवर्ण मानसिकता को चुनौती देते हुए राजसत्ता के सीमाओं को लांग कर एक सवर्ण नवजवान सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध हो गया। उसने क्या क्या, कैसे कैसे बदल दिया। आप जानते हैं, मैं नहीं बताऊँगा। और वो कौन सी शक्तियां और सोच थी जिसने बुद्ध का बहिष्कार, विरोध किया। ये भी आप जानते हैं। इसी देश में जहाँ द्रोणाचार्य एक शूद्र का अंगूठा बिना पढ़ाये गुरु दक्षिणा में ले लेते हैं। वहीँ दूसरी तरफ चाणक्य भी हैं जो रास्ते के किनारे भेड़ चराते एक शूद्र के बच्चे को शिक्षा दे कर चक्रवर्ती सम्राट बना देते हैं। ब्राह्मणवाद के खिलाफ महान योद्धा भीम राव आंबेडकर में आंबेडकर नाम उनके एक ब्राह्मण गुरु का दिया हुआ है। यहाँ मंदिरों का निर्माण कराते, मंदिरों के चौखटों पर सर नवाते अकबर के कहानियां हैं तो मंदिर तोड़ते औरंज़ेब के किस्से भी हैं। ये विरोधाभासभारतीय इतिहास के हर मोड़ और वर्तमान के हर कदम पर विद्यमान है।
अभी वर्तमान में हमारे प्रदेश में एन्टीरोमियो दल बनाया गया है। कहा जा रहा है कि ये महिलाओं की सुरक्षा के लिए काम करेगा। पर असल में ये प्रेमी युगलों पर पहरा है। मिलने जुलने और प्रेम करने पर पाबन्दी है। अब देखिये कितना मजेदार विरोधाभासहै। हिंदी फिल्मों में जो परिवेश, संस्कृति, समाज दिखया जाता है वो मुख्य रूप से उत्तर-मध्य भारत का ही होता है। बॉलीवुड से दक्षिण-उत्तरवूर्व और पश्चिम लगभग नदारद ही रहता है। तो मतलब हिंदी फिल्मे इसी गईया-पट्टी, हिंदी-पट्टी की ही कहानी होती है। उसमे जब बागों में प्रेम दिखाया जाता है तो हमें अच्छा लगता है। लड़के मन ही मन हीरो और लड़कियां मन ही मन हीरोइन होती रहतीं है। जब प्रेम ज़माने के खिलाफ बगावत का ऐलान करता है तो हम साथ होते हैं। प्यार किया तो डरना क्या गाते हैं। जब प्रेमी-युगल फिल्म में परेशानी में फंसता है तो अपने अल्लाह-भगवान से दिल के किसी कोने में दुआ जैसा भी कुछ कर जाते हैं। इस तरह हम प्रेम और प्रेमियों के पक्ष में खड़े हुए लोग लगते हैं; पर एन्टीरोमियों दल हमारे प्रदेश में ही बनाया जाता है। और हम उसे सही कहते हैं। यहीं एक बादशाह के खिलाफ एक राजकुमार ने प्रेम के लिए बगावत कर दी थी और एक हम हैं। जो प्रेम परंपरा के विरुद्ध बहे जा रहें हैं। हमारे प्रदेश में ही प्रेम के प्रतीक श्री कृष्ण जी ने जन्म लिया। अच्छा हुआ आज-कल के दिनों में वो जवाँ नहीं हुए नहीं तो एंटी रोमियो वाले पकड़ लेते। फिर राधा के घर वालों को फोन जाता। पूरे बृज में बदनामी होती और श्री कृष्ण का काम तमाम हो जाता। हम उस प्रदेश में एन्टीरोमियो दल देख रहे हैं जहाँ राधा कृष्ण के रूप में प्रेमियों को पूजते हैं। ये हमारे वर्तमान में भारतीय विरोधाभासी परंपरा का उधाहरण हैं।
दूसरा उदाहरण गोरखनाथ मंदिर का ही ले लेते हैं। ये मंदिर कभी मुस्लिम योगियों और दलित-पिछड़े संतों का गढ़ रहा है। आपसी सद्भाव, सूफी संतत्व, जाति-प्रथा के नाश के आंदोलन का केंद्र रहा है। पर आज हम देख सकते हैं मंदिर किस प्रतीक के रूप में जाना जाता है। आज लोग मंदिर को मुस्लिम-विरोध का गढ़ मानने लगे हैं। राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते ऐसा कुछ समय से किया भी गया जो मंदिर के मूल चरित्र के साथ विरोधाभासी है।
ऐसे ही विरोधाभासके कई उदाहरण और भी दे सकता हूँ। जिसकी कोई जरूरत नहीं है। आप समझ गए होंगे, मैं क्या कहना चाहता हूँ। भारत बहुरंगी सांस्कृतिक धाराओं का विराट समुद्र है। जिसमे कुछ भी निषेध नहीं है। हमने विश्व को प्रेम से सम्भोग और सम्भोग से समाधी तक जाने का रास्ता दिखाया है। एंटी-रोमियों दल हमारी समृद्ध परंपरा और उसके विस्तार पर सवालिया निशान है। भारतीय परंपरा की द्वय विरोधाभासी धारा में आप किधर जाना चाहते हैं? अंगूठा काटने वालों की तरफ, कानों में शीश ढालने वालों की तरफ या फिर गरीब के बच्चे को सम्राट बना कर भारत का गौरव बढ़ाने वालों के साथ। आप प्रेमियों का पक्ष लेते हुए योगिराज कृष्णा के साथ खड़े होना चाहते हैं या एन्टीरोमियो दल की वकालत करते हुए योगी आदित्यनाथ के साथ खड़े होना चाहते हैं। अब फैसला आपको करना है इस विरोधाभासी समय में आप किस तरफ हैं
अनुराग अनंत
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