एक
गरीब महिला अपने बीमार पति का इलाज करने के लिए जिला हरदोई से राजधानी लखनऊ आती है।
पति तीन हज़ार उधार लेकर राजधानी का रुख करता है। पूरा दिन पति पत्नी इलाज और जांच के
लिए इधर उधर धक्के खाते हैं। दिन भर कुछ खाते-पीते भी नहीं क्योंकि उन्हें अंदाजा नहीं
है कि इलाज़ और जांच में अभी कितना रुपया लगेगा। जांच करवा कर अगली सुबह डाक्टर को दिखा
कर वापस गाँव भी जाना था, इसलिए अस्पताल के परिसर में ही पति पत्नी रुक जाते है। रात
को अस्पताल का गार्ड शिवकुमार महिला से कहता
है, भंडारे का प्रसाद बचा है, आ कर लेलो। तुम दोनों के खाने को हो जायेगा। महिला अस्पताल
के लिफ्ट रूम में जाती है और वहां पहले से इन्तजार कर रहे गार्ड संतोष कश्यप और लिफ्ट
मैन विनय कुमार के साथ मिलकर शिवकुमार महिला का गैंगरेप करता है। महिला शोर मचने को
कहती है तो उसे करेंट लगाने की धमकी दी जाती है। अपने साथ घटी इस दरिंदगी के बाद जब
महिला बदहवास बाहर आ कर अपने पति को घटना के बारे में बताती है और हंगामा करने की सोचती
है तो ये दरिंदे पति और महिला को जान से मारने की धमकी देते हैं और डरते धमकाते भी
है। पति-पत्नी रात भर अस्पताल में ही रात में छ: घंटे तक सहमे पड़े रहते हैं। सुबह होती
है तो महिला अपनी आप बीती पुलिस को बताती है तो केस लिखा जाता है।
बुधवार
रात लखनऊ के केजीएमयू के शताब्दी अस्पताल में घटी ये घटना, हमारे असंवेदनशील हो चुके
मन और मस्तिष्क को बलात्कार की साधारण सी घटना ही लगेगी। समस्या यही है कि हमने बलात्कार
की घटनाओं को एक साधारण अपराध की तरह लेना शुरू कर दिया है। ये समाज के रूप में हमारी
सामूहिक चेतना के पतन का सबसे डरावना रूप है। कोई गरीब महिला अपने बीमार पति का इलाज
अकेले बड़े शहर में कराने का सहस जुटाती है और उसके साथ ये दरिंदगी घट जाती है। क्या
आगे से वो ऐसा सहस दुबारा कर सकेगी ? क्या समाज में अन्य महिला इससे डरेंगी नहीं ?
अगर डरेंगी तो हमारे समाज की सामूहिक हार नहीं होगी ?
आज
हमारे समाज में महिलाओं पर अत्याचार बढ़ें हैं। आठ साल की बच्ची से लेकर साठ साल की
वृद्ध तक सारी महिलायें एक खौफ, आशंका और असुरक्षा के माहौल में जीने को अभिशप्त है।
महिलाएँ कहीं सुरक्षित नहीं हैं। स्कूल कालेज, बस-ट्रेन, सड़क-गली, शहर-गाँव, खेत-खलियान
यहां तक की घरों में भी महिलाओं के खिलाफ हैवानियत की कहानियां लिखीं जा रहीं हैं।
सरकारें सिर्फ दावा कर रहीं हैं और हम लगातार असंवेदनशील होते जा रहे हैं। ये तथाकथित
सभ्य समाज की सभ्यता पर लगा सबसे बड़ा सवालिया निशान है।
ये
कौन पुरुष हैं, जो महिलाओं के लिए एक डरावना समाज रच रहें हैं। क्या ये नहीं जानते
कि उनकी बहन, बेटी और माँ को भी इसी समाज में रहना है। एक समाज जहाँ आधी आबादी डरी
हुई रहे, वो कैसा भद्दा और डरावना समाज होगा?
उत्तर
प्रदेश में भाजपा ने नारा दिया था। न गुंडाराज, न भ्रस्टाचार, अबकी बार भाजपा सरकार।
भ्रस्टाचार पर तो अभी कुछ नहीं कह सकते पर गुंडाराज के मामले में सच्चाई दावों के विपरीत
ही है। योगी सरकार के बनने की बाद लोगों को उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था
में सुधार होगा पर योगी सरकार कानून व्यवस्था के मोर्चे पर खास तौर पर विफल रही है।
प्रदेश में लूट-डकैती और बलात्कार की घटनाओं में विशेष बढ़ोत्तरी हुई है। तो क्या ये
मान लिया जाए कि सरकारें चाहे जो भी हों सब के सब महिलाओं के प्रति हिंसा और अत्याचार
रोकने में असफल रहीं हैं। असफलता सरकार की हो या समाज की। ये हमारी निजी और सामूहिक
दोनों तरह की असफलता है। जिसका सबसे बड़ा दंश महिलाएं झेल रहीं हैं। अस्पताल जैसी जगह
जहाँ आदमी टूटा हुआ, हरा हुआ पहुँचता है । वहां ऐसी दरिंदगी अगर हमें शर्मिंदा नहीं
करती तो हमारे भीतर इंसान कहीं मर रहा है । अगर हमारा समाज सामूहिक जिम्मेदारी के साथ
इस तरह की हैवानियत के खिलाफ नहीं खड़ा होता तो हम स्वच्छ समाज की जगह एक सड़ा हुआ समाज
बना रहे हैं। ये हमारे समय की सच्चाई है। यही हमारे समाज का आईना भी है। हम हमारे समाज
में फैलते इस दलदल की सामूहिक जिम्मेदारी अगर नहीं लेते तो हमारे कदम इसी दलदल में
धंसे होंगे और हम एक सड़े हुए समाज के बीचो बीच फंसे होंगे।
अनुराग
अनंत
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