Sunday, September 11, 2011

बाबू साहब ये हिन्दुस्तान है !,यहाँ गरीबों को इंसान नहीं समझते ....

अपने बनवारी लाल जी यूँ  तो मो० कैफ की  तरह आऊट आफ फार्म रहने वाले आदमी हैं। पर भईया जब एक बार उनकी जुबान चल गयी यकीन मानिए आपके दिमाग को लार्ड्स बना डालेंगे और शब्दों के ऐसे छक्के-चौके  लगाएंगे कि सपनों की सेंचुरी होते देर नहीं लगेगी। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप LBW. हो रहे है  या फिर रन आऊट।  वो तो बस खेलने में मस्त रहेंगे, बात एक्चुली ये है की बनवारी लाल जी शिव खेडा, राबिन शर्मा सरीखे मोटिवेशनल गुरुओं से काफी प्रभावित है। तभी तो उन्हें जब भी मौका मिलता है मोटिवेशन करने लगते ये भी नहीं देखते की सामने वाला मोटिवेट होना  भी चाहता है कि नहीं, अभी कल की ही बात लीजिये, एक भिखारी चला आ रह था।  उस बिचारे  से  भूल  से ये भूल  हो गयी कि उसने बनवारी लाल जी से एक रुपया मांग लिया।  फिर क्या था बनवारी लाल जी के भीतर का शिव खेड़ा जाग उठा और वो शरू हो गए वैसे ही जैसे पंडित जी मंत्र पढ़ते है। अरे वृद्ध भिक्षुक! तुम प्रमाद में डूबे हो और धन के इक्षुक हो,पर यकीन मानो ये हाँथ जिन्हें तुम दूसरों के सामने फैलाते हो . ये दूसरों को दान देने के लिए बने है। तुम जिन आँखों को लोगों के सामने झुका कर बात करते  हो, वो गगन के पार देख सकती हैं। तुम्हारे एक इशारे पर धरती पताल एक हो सकते हैं। तुम मनुष्य हो, असीम संभावनाओं के स्वामी हो, तुम अग्नि, जल, आकाश, पर राज कर सकते हो , तुम अजर हो, अमर हो, विजेता हो, शक्तिपुंज हो, तुम यदि चाहो तो प्रदानमंत्री, राष्ट्रपति,......कुछ भी बन सकते हो।  अब्राहम लिंकन से अब्दुल कलाम तक लाखों उदहारण है,जो तुम्हे आगे बढ़ने के लिए कह रहें हैं। ध्यान से सुनों अपनी धड़कनों को, वो तुमसे कुछ कहती है, तुम सब कुछ बदल सकते हो, तुम महान हो।  हे भिक्षुक!  तुम इंसान हो, भिखारी पहले तो संजीव कुमार की  तरह लुटा पिटा  खड़ा रहा, फिर देवानंद की  तरह हिल कर, नाना पाटेकर की  स्टाईल में बोला, ये भाषणबाजी अमेरिका जैसे देश में देना शिव खेड़ा साहब! ये हिन्दुस्तान है, यहाँ गरीबों की  धड़कन सिर्फ  एक चीज़ कहना जानती है वो है ''रोटी'' उसे इसका नाम रटने से फुर्सत मिले तो कुछ और कहे,  आपकी सारी बात इंसानों पर लागू होती हैं, वो इंसान जो आपकी (शिव खेड़ा ) महंगी किताब खरीद सके और उसे अपने  इंसान होने पर यकीन हो सके, ''पर बाबू साहब ये हिन्दुस्तान है !,यहाँ गरीबों को इंसान नहीं समझते .........
                                           तुम्हारा --अनंत 

Thursday, September 8, 2011

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ''

                                   '' सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ''
                                  '' मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए ''
    
कुछ यही स्वर थे रामलीला मैदान में बैठे रालेगन सिद्धि के उस आम आदमी के ,जो आत्महनन के रास्ते जनसंवेदना तक पहुंचना चाहता  था , पर जब व्यक्तिगत   तौर पर मैं  ये तलाशने निकलता हूँ की क्या आधारभूत कारण  है जो समाज में भ्रष्टाचार एक सचाई की तरह व्याप्त  हो गया है ,हमने इसे अपने जीवन का हिस्सा मान लिया है ,तब मुझे इस सच्चाई के नींव  में एक सच बैठा दिखता  है वो है हमारे भीतर सवेदना और दायित्व बोध का सतत क्षरण ,तभी तो एक अफसर  किसी गरीब के दवाई के पैसे से भी रिश्वत मांग लेता है ,राशन वितरक  भूंखे बच्चों का पेट काट  कर राशन की काला  बाजारी करता है ,सड़क पर चलते हुआ नवजवान ये भूल जाता है ,की उसकी बहन भी घर से अकेले बहार निकली होगी ,कालेजों में नशा करते ,अय्याशी करते छात्र ये भूल जाते हैं की माँ बाप की आँखों में कुछ सपने पल रहे होंगे , संसद और विधान मंडलों में जाने के बाद जन प्रतिनिधि जनता  को भूल ही जाता है ,उसकी भावनाओं का मजाक उड़ाता है, सदन में  जूते उछाले जाते हैं , गलियाँ दी जाती है और संसद की  गरिमा को ठेस पहुंचाया  जाता है ,जब समाज में   इस तरह का घन घोर अँधेरा छाता है  ,तब कहीं जा कर किसी आन्दोलन कि जमीन तैयार होती है और वो आन्दोलन जनता के साथ जुड़ता है, उसकी आवाज़ को बुलंद करता है ,जैसा कि हम सभी जानते है कि समाज की  दशा और दिशा बहुत हद तक सत्ता और व्यवस्था के हांथों निर्धारित होती  है और जनता के भीतर भी  स्वेच्छा या अनिच्छा से सत्ता और व्यवस्था  के  लक्षण परिलक्षित होते है पर आन्दोलन इस चुप्पी को तोड़ने का काम  करता  है, जनता में व्याप्त  सामाजिक और राजनीतिक बुराई को दूर करने का करने का काम करता है , तभी जा कर ये आन्दोलन सही अर्थों में जनांदोलन कहलाता है वरना ये मात्र  एक प्रदर्शन बन कर रहा जाता है ,जिन महान आदर्शों को ले कर आन्दोलन चल रहा है ,सब से पहले ये आदर्श आन्दोलन के कार्यकर्ताओं के द्वारा आत्मसात किया जाना चाहिए ,चूंकि आत्मपरिवर्तन  के बिना जगपरिवर्तन  कि प्रक्रिया सफल हो ही नहीं सकती, मेरा आन्दोलन  के आधारभूत लक्षणों पर चर्चा करने का कारण ये है कि  ,जब अन्ना का कथित जन आन्दोलन चरम पर था, रामलीला मैदान में जीत का  जस्न मनाया जा रहा था तभी वहां आन्दोलनकारियों के द्वारा पानी कि बोतलें , चाय नाश्ते कि दुकान ,और फूटपाथ पर दुकान वालों कि दुकानें  लूटी जा रही थी , इस तरह कि घटना से आन्दोलन और आन्दोलन का नेतृत्व दोनों कटघरे में आ जाते है ,और जनांदोलन कि संज्ञा पा चुका आन्दोलन जन भावनाओं पर अघात करता हुआ नज़र आता है ,तब ऐसी स्थिति  में ये जरूरी हो जाता है कि अन्ना आन्दोलन के आदर्श को ले कर जनता के बीच  जाएँ  ,और उनसे उनके सच्चे ,सार्थक ,और रचनात्मक समर्थन कि मांग करे ,ताकि ये आन्दोलन अपनी आधारभूत कसौटी  पर सही उतर सके ,और उनके आन्दोलन में सही और सच्चे कार्यकर्ता  जुड़ सके .न कि मीडिया के द्वारा उतेजित किये गए लोग ,जिन्हें ये भी नहीं मालूम है  कि वो  किसलिए रामलीला के मैदान में आये है ,लोकपाल किस बला का नाम है ,और जो सिर्फ रिश्वत को ही भ्रष्टाचार समझते हैं  ,उनसे आन्दोलन को सार्थक अंत तक पहुंचाने कि उम्मीद भी निरर्थक है ,मेरा मानना है कि  आन्दोलन तभी जन आन्दोलन बन पायेगा जब इस आन्दोलन के कर्यकर्ताओं में सामाजिक और राजनीतिक समझ होगी ,वे फसबुक और ट्विटर पर लिख कर ,झंडा लहरा कर नहीं बल्कि  जनता के बीच जागरूकता , सवेदना ,और दायित्व बोध जगा कर आन्दोलन करें ,देशभक्ति दिखाएं , तथा  कथित देश भक्ति कि गंगा में हाँथ धुलने के बजाय  सच्चे  परिवर्तन कि गंगा को उतरने वाले भागीरथ बनने के लिया तैयार रहें  , वो ये न कहे कि'' अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं ''बल्कि कहें ''अन्ना हम सब मिल संघर्ष करें हम सब एक दूजे के साथ है '' 

                                                                तुम्हारा -- अनंत

मैं तो अब बस अन्ना बनना चाहता हूँ ,


अभी कुछ दिन  पहले शिक्षक दिवस बीत गया ,शिक्षक बोले तो question दागने का टैंक ,जो जहाँ मिलता है'' दे भन्न से '' के अंदाज़ में  question दाग देता है  ,मगर अपने बनवारी लाल जी के बच्चे के क्या कहने , और हो क्यों न , बनवारी लाल जी ने  उसका नाम ही महान लाल रखा है,यूँ तो कक्षा  दो में पढ़ते है महाशय, मगर किसी दार्शनिक से कम नही है . अब अगर ऐसे महान दार्शनिक विचारों के छात्र से कोई साधारण छात्रों  वाला प्रश्न  पूछेगा तो आप समझ ही सकते हैं कि उसके दिमाग  की दही बनने में कितनी देर लगेगी ,शिक्षक दिवस के पावन  अवसर पर एक ऐसा ही साधारण प्रश्न  महान लाल से पूछ लिया गया कि ''तुम बड़े हो कर क्या बनोगे ''फिर क्या था महान लाल किसी महान उत्तर की तलाश में कुछ देर चुप रहा फिर एक काव्यात्मक  उत्तर दिया ,कि गुरुवर! ,
अब न डॉक्टर बनना है न  इंजीनियर 
न प्राइममिनिस्टर ,  न गवर्नर ,
अब नहीं लुभा पाते  मुझे धोनी और तेंदुलकर ,
अब न अमिताभ बच्चन बनना है ,
न राजेश खन्ना बनना है ,
मेरे दिल में तो बस अन्ना बनने कि तमन्ना है ,

हाल तालियों से गूँज उठा कि तभी शिक्षक ने जोर से पुछा, क्यों ? महान लाल ने कहा :- गुरु जी ! अन्ना सर्वशक्तिमान और परम कल्याणकारी हैं। उन्हें छोडिये  उनकी टोपी इतनी शक्तिशाली है कि परम शक्तिमान नेता गण और अनंत शक्तिमान संसद भी उससे डरती है ,आप अन्ना की वो चात्मत्कारी टोपी पहन लीजिये फिर चाहे गाड़ी पर तीन सवारी बिना हेलमेट के चलिए, या फिर झंडे का अपमान करिए, सरकारी राशन की दूकान पर कालाबाजारी करिए, फर्जी चंदा उसूलिये, दिल्ली की सड़कों पर बिना डर के मूत्रदान करिए, ये टोपी इतनी महान है कि इसे पहन कर यदि आप दारू भी पियेंगे तो आपके मुंह से गाली नहीं ''इन्कलाब जिंदाबाद'' निकलेगा और आप आराम से रामलीला मैदान में रात भर कैंडल डांस एन्जॉय कर सकेंगे ,अन्ना तो कलयुग के भागीरथ है जिन्होंने देशभक्ति की नयी गंगा देश में बहाई (वरना लोग तो  टीम इंडिया की जीत  से निकलने वाली देशभक्ति की गंगा से बोर हो गए थे टीम अन्ना की जीत ने मुंह का स्वाद बादल दिया) जिसमे कई भ्रष्टाचारियों  और देशद्रोहियों को अपने तन की कालिख को धुलने  में मदद की, वो भी किसी खास प्रक्रिया में उलझाए  बिना, .करना कुछ नहीं था बस ''अन्ना तुम संघर्ष करो ,हम तुम्हारे साथ हैं'', का नारा लगाया और हो गया  रंग काले  से बसंती।  ठीक किसी कपडा धुलने वाले साबुन के प्रचार की तरह रोचक और सरल, अब आप ही बताइए गुरु जी! जो इंसान भगत  सिंह की कुर्बानी का रंग एक डुबकी में चढवा सकता है, वो कितना महान है और मै ऐसे तो महान  हूँ ही, वैसे भी महान  बनना चाहता हूँ।  इसीलिए हे  गुरु जी! मैं तो अब बस अन्ना बनना चाहता हूँ , सर्व शक्तिशाली अन्ना जो........................... 

                                                                            
                                     तुम्हारा--अनंत